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________________ षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक - ४५-४६, जैनदर्शन च-“ अशुच्यादिरसास्वाद- प्रसङ्गश्चानिवारितः” इति । E-34 किंचातीतानागतवस्तूनि स किं स्वेन स्वेन स्वरूपेण जानाति किं वा वर्त्तमानतयैव 1 प्रथमपक्षे तज्ज्ञानस्याप्रत्यक्षतापत्तिः, अवर्त्तमानवस्तुग्राहित्वात्, स्मरणादिवत् I द्वितीये तु तज्ज्ञानस्य भ्रान्तत्वप्रसङ्गः, अन्यथास्थितस्यार्थस्यान्यथाग्रहणात्, द्विचन्द्रज्ञानादिवदिति ।। व्याख्या का भावानुवाद : मीमांसक (पूर्वपक्ष) : सर्वज्ञादि विशेषण से विशिष्ट आपको इच्छित ऐसे कोई भी देव नहीं है, क्योंकि उस देव का ग्राहकप्रमाण कोई नहीं है । जैसे कि, सर्वज्ञादिविशेषण से विशिष्ट कोई देव प्रत्यक्ष से ग्राह्य नहीं है, क्योंकि वर्तमानकालीन तथा इन्द्रियो के साथ संबद्ध अर्थ का प्रकाशक (ग्राहक) प्रत्यक्ष प्रमाण है । जबकि सर्वज्ञादि विशेषण से विशिष्टदेव वर्तमान में उपस्थित नहीं है तथा उसका इन्द्रिय के साथ सन्निकर्ष भी नहि है । इसलिए उसका ग्राहक प्रत्यक्षप्रमाण नहीं है । ३३ / ६५६ सर्वज्ञादि विशेषण से विशिष्ट देव अनुमान से ग्राह्य नहीं है, क्योंकि अनुमान प्रत्यक्ष से देखे हुए अर्थ में ही प्रवर्तित होता है। तादृश देव प्रत्यक्ष से देखे हुए नहीं है, इसलिए वे अनुमान से भी ग्राह्य नहि है । I वे देव आगमप्रमाण से भी ग्राह्य नहिं है । क्योंकि सर्वज्ञ असिद्ध होने के कारण उसका आगम भी विवादास्पद है। वे देव उपमानप्रमाण से भी ग्राह्य नहि है, क्योंकि सर्वज्ञ के समान संसार में दूसरा कोई पदार्थ नहि है, कि जिससे उसको देखकर होनेवाला सादृश्य ज्ञान से (उपमान प्रमाण द्वारा) सर्वज्ञ को ग्रहण किया जा सके । वे देव अर्थापत्ति से भी ग्राह्य नहीं है। क्योंकि सर्वज्ञ के बिना नहि होनेवाला कोई अविनाभावि अर्थ दिखता नहि है, कि जिससे उस पदार्थ द्वारा अर्थापत्ति से सर्वज्ञ ग्राह्य बन सके । अर्थात् सर्वज्ञ के साथ नियतसाहचर्य रखनेवाला और सर्वज्ञ के बिना नहि रहता हुआ ऐसा कोई पदार्थ नहिं है, कि जिससे (अर्थापत्ति द्वारा) सर्वज्ञ को ग्रहण किया जा सके । इसलिए सर्वज्ञ को ग्रहण करने में पांचो प्रमाणो की प्रवृत्ति का अभाव होने से सर्वज्ञ अभाव प्रमाण का विषय बनता है । अर्थात् अभाव प्रमाण से सर्वज्ञाभाव सिद्ध होता है। इसलिए कहा है कि... "जब जो वस्तु की सत्ता सिद्ध करने के लिए प्रत्यक्षादि प्रमाण असमर्थ बन जाते है अभाव अभावप्रमाण से सिद्ध होता है ।" यह अनुमानप्रयोग इस अनुसार से है - सर्वज्ञ नहि है, क्योंकि वह प्रत्यक्षादि पांच प्रमाण का विषय बनता नहि है। जैसे कि, गधे के सिंग । प्रश्न : जैसे अनादिकाल से भी खान में रहा हुआ मलिनसुवर्ण क्षार, मिट्टी के पुटपाक की प्रक्रिया से (E-34) तु० पा० प्र० प० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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