SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 576
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निक्षेपयोजन ५४९/११७२ है । भावरूप अर्थ से जो कार्य सिद्ध होता है, वह नाम, स्थापना अथवा द्रव्य से नहीं सिद्ध होता । मिट्टी का जब घट रूप में परिणाम होता है तभी पानी लाया जा सकता है । घट का नाम अथवा घट का चित्र अथवा घट का कारण मृत्पिंड पानी लाने का साधन नहीं बन सकता । इसलिए घट शब्द का वास्तव में वाच्य अर्थ मिट्टी का परिणाम स्वरूप भाव घट ही है, नाम आदि को घट शब्द का वाच्य मानने से कोई लाभ नहीं है । पानी का लाना आदि विशेष कार्य घट का है, वही यदि किसी अर्थ से नहीं सिद्ध होता तो उसको घट नाम से कहना उचित नहीं है । नाम केवल नाम है, वह नाम के द्वारा वाच्य वस्तु के समान स्वयं वस्तु नहीं हो सकता । समाधान : न, नामादीनामपि वस्तुपर्यायत्वेन सामान्यतो भावत्वानतिक्रमात्, अविशिष्टे इन्द्रे वस्तुन्युचरिते नामादि भेदचतुष्टयपरामर्शनात् प्रकरणादिनैव विशेषपर्यवसानात् । (जैनतर्क भाषा) अर्थ : समाधान-नाम आदि भी वस्तु के पर्याय हैं, इसलिए सामान्य रूप से उनमें भी भावपन है । सामान्य रूप से इन्द्र शब्द का उच्चारण करने पर नाम आदि चार भेदों का ज्ञान होता है, प्रकरण आदि के द्वारा विशेष का ज्ञान अंत में हो जाता है । सारांश यह है कि, केवल पर्याय ही कार्य को सिद्ध नहीं करता । नाम आदि से भी कार्य सिद्ध होते हैं । घट पर्याय पानी लाने का साधन है और घट का नाम अन्य को घट के विषय में ज्ञान कराने का साधन है । बिना नाम के घट के विषय में लाने का, ले जाने का अथवा रखने आदि का व्यवहार नहीं हो सकता । व्यवहार शब्द के अधीन है, शब्दरूप न होने के कारण भाव घट वाक्य के द्वारा व्यवहार का साधन नहीं हो सकता । स्थापना भी आकार का अनुभव कराती है । आकार का अनुभव कराना भी एक कार्य है । इस कारण स्थापना भी भाव है । कारण, द्रव्य को देखकर उससे उत्पन्न होनेवाले कार्यों का ज्ञान होता है । भावी कार्य के विषय में ज्ञान उत्पन्न करना यह भी एक कार्य है । सभी भाव एक प्रकार के कार्य को नहीं उत्पन्न करते । भाव घट के समान नाम घट आदि भी अपने अपने कार्यों के उत्पन्न करनेवाले है, इसलिए वे भी वस्तुरूप है । सामान्य रूप से किसी भी शब्द को सुनकर नाम आदि चारों का ज्ञान होता है। किस अवसर पर किसको लेना है, यह निर्णय प्रकरण आदि के द्वारा होता है । भाव जिस प्रकार वस्तु का पर्याय है, नाम आदि भी इस प्रकार वस्तु के पर्याय है । अब नामादि तीन की उपयोगिता बताते हुए कहते है कि, भावाङ्गत्वेनैव वा नामादीनामुपयोगः, जिननामजिनस्थापनापरिनिर्वृतमुनिदेहदर्शनाद्भावोल्लासानुभवात् । के वलं नामादित्रयं भावोल्लासेऽनैकान्तिकमनात्यन्तिकं च कारणमिति ऐकान्तिकात्यन्तिकस्य भावस्याभ्यर्हितत्वमनुमन्यन्ते प्रवचनवृद्धाः । एतञ्च भिन्नवस्तुगतनामाद्यपेक्षयोक्तम् । (जैनतर्क भाषा) अर्थ : अथवा भाव का साधन होने के कारण नाम आदि का उपयोग है, “जिन" के नाम से, "जिन" की स्थापना से और जो मुनि निर्वाण को प्राप्त हो गया है उसके देह के देखने से भाव में उल्लास का अनुभव होता है, इसलिए नाम आदि भाव के साधन हैं । नाम आदि तीनों भाव के उल्लास में एकान्त रूप से और आत्यन्तिक रूप से कारण नहीं है, केवल इस कारण प्रवचन के वृद्ध आचार्य भाव को उत्कृष्ट मानते हैं । यह समाधान भिन्न वस्तुओं में रहनेवाले नाम आदि की अपेक्षा से कहा है । कहने का मतलब यह है कि, सामान्य पुरुष में भी “जिन" नाम का संकेत होता है इस नाम को सुनकर भी श्रोता के मन में भाव जिन का स्मरण हो जाता है और अत्यन्त भक्ति प्रकट हो जाती है । इसी प्रकार जिसके आकार से द्वेष आदि का अभाव प्रकट होता है इस प्रकार की जिन प्रतिमा को देखकर भी भाव का उल्लास अनुभव से सिद्ध है । जिन प्रतिमा को देखकर "कब मेरे राग-द्वेष आदि शान्त होंगे और में इसके समान हो जाऊँगा" इस प्रकार की इच्छा हो जाती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy