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________________ निक्षेपयोजन ५४३ / ११६६ चित्र और अक्ष आदि में जो स्थापना की जाती है, वह जब तक चित्र आदि रहते हैं तभी तक रहती है । चित्र आदि लुप्त होने पर यह स्थापना नहीं रहती । नन्दीश्वर के चैत्यों की प्रतिमा में जो स्थापना है वह शाश्वत प्रतिमाओं होने के कारण चिरकाल तक रहती है। जब तक प्रतिमाओं की कथा चलती है तब तक स्थापना स्थिर है इसलिए यावत्कथिक कही जाती है । द्रव्य निक्षेप का स्वरूप : भूतस्य भाविनो वा भावस्य कारणं यत्रिक्षिप्यते स द्रव्यनिःक्षेप (3) यथाऽनुभूतेन्द्रपर्यायोऽनुभविष्यमाणेन्द्रपर्यायो वा इन्द्रः, अनुभूतघृताधारत्वपर्यायेऽनुभविष्यमाणघृतपर्याये च घृतघटव्यपदेशवत्तत्रेन्द्रशब्दव्यपदेशोपपत्तेः । (जैनतर्क भाषा ) अर्थ : भूत भाव का अथवा भावी भाव का जो कारण निक्षिप्त किया जाता है वह द्रव्य निक्षेप है, जैसे जो भूतकाल में इन्द्र पर्याय का अनुभव कर चुका है अथवा जो भावी काल में इन्द्र पर्याय का अनुभव करेगा वह इन्द्र है । जिस घट में घृत भूतकाल में रक्खा गया था अथवा भावीकाल में जिस में घृत रक्खा जायेगा, उसमें जिस प्रकार घृतघ का व्यवहार होता है, इस प्रकार उस पूर्वोक्त मनुष्य में इन्द्र शब्द का व्यवहार हो सकता है । सारांश यह है कि, जिस में कभी घी को रक्खा गया था अथवा जिस में घी रक्खा जायेगा उस घट को वर्तमान काल में घृत के साथ संबंध न होने पर भी लोग घृत का घट कह देते हैं । घृत का आधार होना पर्याय है, यह पर्याय घट के बिना नहीं हो सकता, इस लिए घट इस पर्याय का कारण है । कारण होने से यहाँ पर घट द्रव्य कहा गया है । कारण होने पर भी उसका व्यवहार पर्याय के द्वारा होता है । संयोग संबंध से घट में घी रहता है । आधार होने के कारण घृतघट ह जाता है । घृत घट कहलाने में घृत का आधार होना निमित्त है । जो मनुष्य अभी मनुष्य है, वह यदि कभी अर्थात् पूर्व भव में इन्द्र बन चुका हो अथवा आगामी काल में अर्थात् आगामी भव में इन्द्र बन जानेवाला हो, तो उसको इस रीति से इन्द्र कहा जा सकता है । यहाँ ध्यान रखना कि पर्याय अनेक प्रकार के होते हैं । मिट्टी के पिंड का घट के आकार में परिणाम पर्याय है । इस परिणाम का कारण होने से मिट्टी द्रव्य घट है । मिट्टी घट का कारण होने से द्रव्य घट है और घट घृत का आधार होने से घृतघट है । इन दोनों द्रव्य निक्षेपों में कारण का कारणभाव समान नहीं है । घृत को धारण करने में घट निमित्त कारण है, उपादान कारण नहीं | घट घृत के संयोगरूप में परिणत नहीं होता, निमित्त का कार्य रुप में परिणाम नहीं हो सकता । मिट्टी द्रव्य घट है, परन्तु वह घट का परिणामी कारण है, निमित्त कारण नहीं । मिट्टी घटरूप को धारण कर लेती है । द्रव्य निक्षेप के लिए अर्थ को कारण होना चाहिए, परिणामी कारण हो अथवा निमित्त कारण हो, वह द्रव्य निक्षेप के रूप में हो सकता है । द्रव्य निक्षेप का भिन्न दृष्टिकोण से स्वरूप बताते हुए कहते है कि, क्वचिदप्राधान्येऽपि द्रव्यनिक्षेपः प्रवर्तते यथाऽङ्गारमर्दको द्रव्याचार्यः, आचार्यगुणरहितत्वात् अप्रधानाचार्य इत्यर्थः । (जैनतर्क भाषा) अर्थ : कहीं अप्रधानता में भी द्रव्य निक्षेप प्रवृत्त होता है, जिस प्रकार अंगारमर्दक द्रव्याचार्य कहा गया है । आचार्य के गुणों से रहित होने के कारण अप्रधान आचार्य है, यह द्रव्य पद का यहाँ पर अभिप्राय है । अंगारमर्दक की कथा इस प्रकार है- गर्जनक नाम के नगर में एक बार आचार्य श्री विजयसेनसूरि नामक आचार्य आये। उन्हों ने एक दिन अपने शिष्यों से कहा, आज एक आचार्य आयेगा पर वह भव्य नहीं हैं। उनके कहते कहते रुद्रदेव 3. भूतस्य भाविनो वा भावस्य हि कारणं तु यल्लोके । तद्द्रव्यं तत्त्वज्ञैः सचेतनाचेतनं कथितम् ।। (अनु. सू. १२, वृत्ति) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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