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________________ निक्षेपयोजन परिशिष्ट - ५ ।। जैनदर्शन में निक्षेप योजन || पदार्थ के स्वरूप को जानने के लिए अनेक मार्ग है । प्रमाण, नय और सप्तभंगी की तरह 'निक्षेप' भी वस्तु को जानने का एक मार्गविशेष है । जैनदर्शन की वह एक अनुठी शैली है । अब यहाँ जैनतर्क भाषा और अनुयोग द्वार सूत्र ग्रंथ के आधार 'निक्षेप की व्याख्या और उसके प्रकार का वर्णन किया जाता है - ५३९ / ११६२ निक्षेप का सामान्य स्वरूप : अथ निःक्षेपा निरूप्यन्ते । प्रकरणादिवशेनाप्रतिपत्त्या (त्त्या) दिव्यवच्छेदकयथास्थान-विनियोगाय - शब्दार्थरचना - विशेषा निःक्षेपा: (1) । (जैनतर्कभाषा) अर्थ : अब निक्षेपों का निरूपण किया जाता है । प्रकरण आदि के द्वारा अप्रतिपत्ति आदि का निराकरण करके उचित स्थान में विनियोग करने के लिए शब्द के वाच्य अर्थ के विषय में रचना विशेष निक्षेप कहे जाते हैं । कहेन का मतबल यह है कि, नयों के समान निक्षेपों का श्रुत प्रमाण के साथ संबंध विशेष रूप से है। श्रुत और नय के द्वारा किसी अपेक्षा से अर्थ के प्रति जब इच्छा होती है, तब अर्थ वाच्य हो जाते हैं । वाच्य अर्थों के वाचकों का भेद से प्रतिपादन निक्षेपों का स्वरूप है । शब्द को सुनकर अर्थ का ज्ञान श्रोताओं को एक रूप से नहीं होता । जो श्रोता व्युत्पन्न नहीं होता वह अवसर पर पद के उस अर्थ को नहीं जानता, जिसमें वक्ता का अभिप्राय होता है । किसी पदों के अर्थ का सामान्य रूप से ज्ञान होता हैं पर विशेष रूप से अर्थ को जानने की शक्ति नहीं होती । शब्द के अनेक अर्थ हैं उनमें से किस अर्थ को लेना चाहिए इस विषय में उसको संदेह हो जाता है । कभी कभी इस प्रकार के श्रोता को भ्रम हो जाता है । जिस अर्थ में अभिप्राय हो उसको न लेकर अन्य अर्थ को वहाँ पर वह समझ लेता है । उत्पन्न होनेवाले संदेह, भ्रम और अज्ञान का निराकरण हो जाय इसके लिए निक्षेपों की रचना की जाती है । निक्षेपों को जानकर प्रकरण आदि के द्वारा श्रोता अभिप्रेत अर्थ को ग्रहण कर लेता है और अन्य अर्थ का त्याग कर देता है । प्रकरण आदि के समझने में निक्षेप सहायता करते । पारमार्थिक अर्थ को निक्षेप की सहायता से श्रोता जानकर उसका उचित स्थान में विनियोग कर सकता है । जिस शब्द के अनेक अर्थ होते हैं उसका विशेष अर्थ प्रकरण की सहायता से प्रतीत होता है, इसका प्रसिद्ध उदाहरण 'सैन्धव' शब्द है । सैन्धव शब्द के दो अर्थ हैं और वे दोनों मुख्य हैं । एक अर्थ है अश्व, दूसरा अर्थ है लवण । यदि वक्ता कहे 'सैन्धवं आनय' अर्थात् सैन्धव को लाओ तो श्रोता सुनकर सन्देह करने लगता है, मुझे घोडा लाने के लिए कहा गया है वालवण लाने के लिए । इसके अनन्तर यदि श्रोता समझता है, इस समय भोजन का अवसर है बाहर जाने का नहीं, तो वह प्रकरण के अनुसार लवण अर्थ का स्वीकार कर के लवण ले आता है । यदि निक्षेपों के द्वारा सैन्धव शब्द के चार प्रकार के वाच्य अर्थो को प्रकट कर दिया जाय तो प्रकरण के समझने में सरलता होती है । इस अवसर पर जिस को सैन्धव पद के नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव निक्षेपों का ज्ञान हो गया है, वह भोजन का अवसर है वा बाहर जाने का, इस वस्तु को शीघ्र जान लेता है । निक्षेप के अनुसार जिसने जान लिया है, सैन्धव शब्द का यहाँ पर भाव निक्षेप अश्व अथवा लवण है, उसको अश्व वाच्य है अथवा लवण, इस प्रकार का संदेह नहीं होता । 1. एवं निक्षेपणं निक्षेपः, निक्षिप्यते वा अनेनास्मिन्नस्मादिति वा निक्षेपः न्यासः स्थापनेति पर्यायाः । (अनु.सू. हारिभद्रीयवृत्ति) एवं निक्षेपणं शास्त्रादेर्नाम-स्थापनादिभेदैर्न्यसनं व्यवस्थापनं निक्षेपः, निक्षिप्यते नामादिभेदैर्व्यवस्थाप्यन्ते अनेनास्मिन्नस्मादिति वा निक्षेप:, वाच्यार्थविवक्षा तथैव । (अनु. सू. हेमचन्द्रीयवृत्ति) । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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