SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 382
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक ७०-७१, मीमांसक दर्शन - (मू. श्लो.) अत एव पुरा कार्यो वेदपाठः प्रयत्नतः । ततो धर्मस्य जिज्ञासा कर्तव्या धर्मसाधनी ।।७० ।। श्लोकार्थ : इसलिए ही पहली वय में प्रयत्नपूर्वक वेद पाठ करना चाहिए। बाद में धर्म को सिद्ध करने के लिए धर्म की (२) जिज्ञासा करनी चाहिए | ||७०|| व्याख्या : अत एव-सर्वज्ञाद्यभावादेव पुरा- पूर्वं वेदपाठः ऋग्यजुःसामाथर्वणानां वेदानां पाठ: प्रयत्नतः कार्यः । ततः किं कर्त्तव्यमित्याह- 'ततो धर्मस्य' इति । ततो वेदपाठादनन्तरं धर्मस्य जिज्ञासा कर्तव्या । धर्मो ह्यतीन्द्रियः, ततः स कीदृक्केन प्रमाणेन वा ज्ञास्यत इत्येवं ज्ञातुमिच्छा कार्या । सा कीदृशी धर्मसाधनी धर्मसाधनस्योपायः ।। ७० ।। - व्याख्या का भावानुवाद : सर्वज्ञ और उनके वचनो का अभाव होने से प्रथम वय में ही ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्वण वेदो का पाठ प्रयत्नपूर्वक करना चाहिए। प्रथम वय में प्रयत्नपूर्वक वेदो का पाठ करने के बाद क्या करना चाहिए? वेदपाठ की अनंतर धर्म की जिज्ञासा करनी चाहिए। धर्म अतीन्द्रिय है । इसलिए वह धर्म कौन से प्रकार से तथा कौन से अनुसार से मालूम होगा अर्थात् धर्म को जानने की इच्छा = जिज्ञासा करनी चाहिए। उस धर्म की जिज्ञासा धर्मसिद्धि का उपाय है | ॥७०॥ Jain Education International ३५५ / ९७८ तवं ततस्तस्य निमित्तं परीक्ष्यं निमित्तं च नोदना । निमित्तं हि द्विविधं जनकं ग्राहकं च । अत्र तु ग्राहकं ज्ञेयम् । एतदेव विशेषिततरं प्राह जिस कारण से “प्रथमवय में वेदपाठ और बाद में धर्म की जिज्ञासा करनी चाहिए।" इस अनुसार वह धर्म को जानने का एकमात्र निमित्त नोदना है। धर्म के निमित्त की परीक्षा करनी चाहिए। उस धर्म का निमित्त एकमात्र नोदना = वेद है । निमित्त दो प्रकार के है । (१) जनकनिमित्त और (२) ग्राहकनिमित्त । (कार्य को उत्पन्न करनेवाले को जनकनिमित्त कहा जाता है। जिसके द्वारा वस्तु का ज्ञान किया जाता है, वह ग्राहकनिमित्त कहा जाता है ।) यहाँ नोदना से धर्म का ज्ञान होता है। इसलिए नोदना धर्म का ग्राहकनिमित्त है । यही बात को विशेष कहा जाता है । (मू. श्लो.) नोदनालक्षणो^ धर्मो नोदना तु क्रियां प्रति । प्रवर्तकं वचः प्राहुः स्वःकामोऽग्निं यथा यजेत् । । ७१ ।। श्लोकार्थ: प्रेरणा (नोदना - चोदना) यह धर्म का लक्षण है । क्रिया के प्रति प्रवर्तकवचन को नोदना कहा जाता है। अर्थात् नोदना यानी क्रिया की प्रेरणा करने वाला वचन। जैसे कि "स्वर्गकामो यजेत् " इस वाक्य A " चोदनालक्षणोऽर्थो धर्मः ।। २ ।। चोदना इति क्रियायाः प्रवर्तकं वचनमाहुः । आचार्यचोदितः करोमि इति ।" मी सू. शावरभा० ।। १ । १ । २ ।। (२) पेज नंबर ३९३ पर देखें । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy