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________________ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - २, श्लोक - ६१ वैशेषिक दर्शन ३२१/९४४ उसमें पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु, ये चारो द्रव्यो के नित्य और अनित्य ऐसे दो भेद है। परमाणुरुप पृथ्वी आदि नित्य है। क्योंकि कहा है कि.. "सत् होने पर भी जो वस्तु कारणो से उत्पन्न होती नहीं है, वह नित्य होती है।" परमाणुरुप द्रव्य सत् तो है ही। साथ साथ किसी कारणो से उत्पन्न होता नहीं है। इसलिए नित्य है। उस परमाणु के संयोग से उत्पन्न हुए व्यणुक आदि कार्यद्रव्य अनित्य है। आकाशादि द्रव्य नित्य ही है। क्योंकि किसी कारण से उत्पन्न होते नहीं है। द्रव्यत्व नाम की जाति के संबंध से उसमें द्रव्यरुपता आती है। अर्थात् "द्रव्य - द्रव्य" ऐसा अनुगतव्यवहार कराता है। तथा द्रव्यत्व सामान्य से उपलक्षित द्रव्यत्व का द्रव्य के साथ समवाय संबंध होता है । अर्थात् समवाय तो एक और नित्य है। इसलिए द्रव्यत्वविशेषवाला समवाय या समवाय से संबद्ध द्रव्यत्व द्रव्यो में द्रव्यरुपता का प्रयोजक है। इस द्रव्यत्व का समवाय गुणादिपदार्थो से द्रव्य को व्यावृत्त करता है और उसमें "द्रव्य द्रव्य" एसा अनुगत व्यवहार कराता है। इसलिए यह द्रव्य का व्यवच्छेदकलक्षण = असाधारणलक्षण है। इस अनुसार से पृथ्वी आदि के पाषाणादि भेदो में भी पृथ्वीत्वादि का समवायसंबंध जानना । वह समवाय जलादिपदार्थो से पृथ्वी को भिन्न सिद्ध करता है तथा पृथ्वी आदि जलादि से भिन्न है ऐसे व्यवहार में कारण बनता है। अर्थात् इस अनुसार से पृथ्वी में पृथ्वीत्व का समवाय, अग्नि में अग्नित्व का समवाय, उस पृथ्वी आदि की इतरद्रव्यो से व्यावृत्ति कराके "पृथ्वी" आदि अनुगतव्यवहार में कारण बनता है। भेद वगैर के आकाश, काल, दिशा ये तीनद्रव्यो की आकाश, काल, दिशा ये संज्ञाए तथा व्यवहार अनादिकालीन है। अर्थात् आकाश, काल और दिशा एक ही द्रव्य है। इसलिए उसमें आकाशत्व आदि जाति प्राप्त होती नहीं है। इसलिए उनकी "आकाश, काल और दिशा" ये संज्ञाए अनादिकालीन है। ये नौ प्रकार के द्रव्यो के सामान्य से दो प्रकार है। (१) अद्रव्य द्रव्य, (२) अनेकद्रव्य द्रव्य । उसमें आकाश, काल, दिशा, आत्मा, मन और परमाणु अद्रश्य द्रव्य है। क्योंकि कारणद्रव्यो से उत्पन्न होते नहीं है। इसलिए आकाशादि अद्रव्य द्रव्य है। अर्थात् नित्य है। व्यणुकादि स्कंध अनेकद्रव्य है । (जिसकी उत्पत्ति में अनेकद्रव्य समवायिकारण बनते है, वह अनेकद्रव्य द्रव्य है। अर्थात् अनित्य द्रव्य कहा जाता है। जैसे कि, परमाणु से उत्पन्न हुए व्यणुकादि । अर्थात् द्रव्य या तो अद्रव्य - नित्य होगा या अनेकद्रव्य - अनित्य होगा। कोई भी द्रव्य "एक द्रव्य" - जिसकी उत्पत्ति में एक ही समवायिकारण हो वह एकद्रव्य, हो सकता नहीं है। जैसे कि, ज्ञानादिगुण । दो परमाणु से उत्पन्न होनेवाले कार्यद्रव्य को अणु कहा जाता है। क्योंकि दो परमाणु से उत्पन्न हुए व्यणुक का अणुपरिमाण होता है । (उसी तरह से) तीन-चार परमाणुओं से उत्पन्न हुए कार्यद्रव्य का परिणाम भी अणु ही होता है। परंतु वह व्यणुक नहीं कहा जाता । तीन या चार व्यणुक से उत्पन्न हुए कार्यद्रव्य को त्र्यणुक कहा जाता है। परंतु दो व्यणुक से उत्पन्न हुए कार्यद्रव्य को त्र्यणुक कहा जाता नहीं है। क्योंकि दो व्यणुक से उत्पन्न हुए कार्यद्रव्य की उपलब्धि में निमित्तभूत महत्त्व होता नहीं है। तथा त्र्यणुक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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