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षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक - ५७, जैनदर्शन
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विशेषरुप हेतु भी साध्य का गमक बन सकता नहीं है।
तदुपरांत, परस्परनिरपेक्ष सामान्य और विशेष उभयरुपहेतु भी साध्य का गमक बन सकता नहीं है। क्योंकि वैसा मानने में सामान्य और विशेषपक्ष में जो दोष आते थे, वे सभी दोष इस पक्ष में आ जायेंगे।
"हेतु अनुभयरुप है। अर्थात् सामान्यरुप भी नहीं है या विशेषरुप भी नहीं है" -- यह पक्ष तो बिलकुल अनुचित है। (क्योंकि जगत में अनुभय तो कोई पदार्थ हो सकता ही नहीं है।) सामान्य और विशेष एकदूसरे का व्यवच्छेद करके ही रहते है। क्योंकि नियम है कि परस्पर का व्यवच्छेद करनेवाले पदार्थ एक का निषेध करके ही दूसरे का विधान करता है । अर्थात् जो सामान्य होगा वह विशेष का निषेध करके तथा जो विशेष होगा वह सामान्य का निषेध करके ही अपना स्थापन करेगा। इसलिए यदि वह सामान्यरुप न हो, तो विशेषरुप होना ही चाहिए और यदि वह विशेषरुप न हो, तो सामान्यरुप होना ही चाहिए। सारांश में एक का निषेध करने से दूसरे का विधान अवश्य हो जाता है। दोनो का एक साथ निषेध किया नहीं जा सकता। इसलिए उभय के निषेधरुप अनुभय की सत्ता न होने से ऐसा हेतु का भी अयोग हो जायेगा।
बुद्धिकल्पित (अन्यापोहरुप) सामान्य तो अवस्तु है। क्योंकि उसका साध्य के साथ प्रतिबंध = अविनाभावि संबंध असिद्ध है। इस तरह से वह सर्वथा असिद्ध होने से हेतु बन सकता नहीं है।
इस तरह से सामान्यादि की असिद्धि होने से सामान्यादिस्वरुप सभी हेतु भी असिद्ध ही है। __तथा प्रतिबन्धविकलाः समस्ता अपि परोपन्यस्ता हेतवोऽनैकान्तिका अवगन्तव्याः । न चैकान्तसामान्ययोर्विशेषयोर्वा साध्यसाधनयोः प्रतिबन्ध उपपद्यते । तथाहि-सामान्ययोरेकान्तेन नित्ययोः परस्परमनुपकार्योपकारकभूतयोः कः प्रतिबन्धः, मिथः कार्यकारणादिभावेनोपकार्योपकारत्वे त्वनित्यत्वापत्तेः । विशेषयोस्तु नियतदेशकालयोः प्रतिबन्धग्रहेऽपि तत्रैव तयोर्ध्वंसात्साध्यर्मिण्यगृहीतप्रतिबन्ध एवान्यो विशेषो हेतुत्वेनोपादीयमानः कथं नानैकान्तिकः । किंच प्रतिबन्धः पक्षधर्मत्वादिके लिङ्गलक्षणे सति संभवी, नच साध्यसाधनयोः परस्परतो धर्मिणश्चैकान्तेन भेदेऽभेदे वा पक्षधर्मत्वादिधर्मयोगो लिङ्गस्योप-पत्तिमान, संबन्धासिद्धेः ।
व्याख्या का भावानुवाद :
तदुपरांत, परवादि के द्वारा उपन्यस्त सभी प्रतिबंध = अविनाभाव से विकलहेतु अनैकान्तिक जानना। अर्थात् प्रतिवादि के द्वारा प्रयोजित किये हुए हेतुओ का अपने साध्य के साथ अविनाभाव संबंध नहीं है। इसलिए वे सभी हेतु अविनाभावशून्य होने से अनैकान्तिक है।
एकांत से (सर्वथा) सामान्यरुप या विशेषरुप हेतु और साध्य में प्रतिबंध = अविनाभाव संबंध हो नहीं
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