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षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक - ५७, जैनदर्शन
विनाश होता है, यह पक्ष भी योग्य नहीं है। इसलिए इच्छा न होने पर भी आपको स्वीकार करना पडेगा कि, घट घटस्वरुप से नाश होता है, कपालस्वरुप से उत्पन्न होता है और मिट्टीस्वरुप से ध्रुव रहता है 1
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(विनाशधर्म की विचारणा की, अब घट के विषय में उत्पादधर्म की विचारणा करते हुए कहते है कि) वस्तु को त्रयात्मक न मानते परवादि को प्रश्न करना चाहिए कि... घट जब उत्पन्न होता है, तब वह क्या देश से उत्पन्न होता है या समग्रतया उत्पन्न होता है ?
यदी “देश से घट उत्पन्न होता है।" ऐसा कहोंगे तो वह भी योग्य नहीं है। क्योंकि घट देश से उत्पन्न हुआ प्रतीत होना चाहिए, परंतु पूर्णरुप से नहि । परन्तु घट तो पूर्णरुप से उत्पन्न हुआ प्रतीत होता है। इसलिए "देश से घटोत्पत्तिवाला" पक्ष युक्तियुक्त नहीं है।
“समग्रतया घट उत्पन्न होता है।" यह पक्ष भी उचित नहीं है। क्योंकि यदि घट समग्रतया उत्पन्न होता हो, तब मिट्टी की प्रतीति नहीं होनी चाहिए। परंतु तब मिट्टी की प्रतीति होती नहीं है ऐसा नहीं है, अर्थात् होती ही है। यह घट मिट्टी का है, सुवर्ण का नहीं है, ऐसे प्रकार की प्रतीति होती ही है।
इसलिए घट जब उत्पन्न होता है, तब वह घटस्वरुप से उत्पन्न होता है, मृत्पिंडरूप से नाश होता है, मिट्टी स्वरुप से ध्रुव रहता है, ऐसा आपको इच्छा न होने पर भी स्वीकार करना ही पडेगा ।
वैसे ही जगत में जिस अनुसार से वस्तु सभी लोगो के द्वारा प्रतीत होती है, उस अनुसार से स्वीकार करने में न आये तो सर्ववस्तु की व्यवस्था कभी भी नहीं हो सकेगी। इसलिए यथाप्रतीति अनुसार ही वस्तु हो, अन्यथा प्रकार से नहि और इसलिए ही जो वस्तु नाश हुई थी, वह वस्तु ही आज नाश होती है और भविष्य में भी कथंचित् (पर्याय रुप से) नाश होगी। जो वस्तु स्थिर थी वही वस्तु आज स्थिर रहती है और भविष्य में भी कथंचित् स्थिर रहेगी ।
इत्यादि त्रिकालवर्ती सर्ववस्तुओ की उत्पादादि त्रयात्मकता संगत होती है। जगत की समस्त चेतन और अचेतन वस्तुए सर्वदा उत्पादादि त्रयात्मक रुप से ही निर्बाध प्रत्यक्ष से महसूस होती है और त्रयात्मक स्वरुप से अनुभव में आती सर्ववस्तुओ में विरोध का कोई अवकाश नहीं है। अन्यथा ( वस्तु के ये त्रयात्मक स्वरुप से किसी को विरोध होना ही नहीं चाहिए और विरोध हो तो) घट वस्तु का अपने रुपादि प्रतीतधर्मो से भी विरोध होने की आपत्ति आयेगी ।
जगत की समस्त वस्तुओं की त्रयात्मकता को सिद्धि करता (अनुमान) प्रयोग इस अनुसार से है। "सभी वस्तुएं उत्पादादि त्रयात्मक है। क्योंकि सत् है । जो उत्पादादि त्रयात्मक नहीं है वह सत् भी नहीं है, जैसे की गधे के सिंग (तथा चेदम्) जगत की समस्त वस्तुए सत् है । (तस्माद् तथा) इसलिए उत्पादादि त्रयात्मक है । यहाँ केवलव्यतिरेकी अनुमान वस्तुओं को त्रयात्मक सिद्ध करता है ।
सत्त्व के ये उत्पादादि त्रयात्मक रुप लक्षण से नैयायिको इत्यादि के द्वारा परिकल्पित सत्ता के योग (संबंध) रुप सत्त्व के लक्षण का तथा बौद्धो के द्वारा माने गये अर्थक्रियारुप सत्त्व के लक्षण का ऐसे
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