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षड्दर्शन समुच्चय, भाग-२ (२१-६२१)
११४४
११४४
११४९/५९४ प्रमाण विशेष
क्रम विषय श्लोक नं.
- चतुर्थ भंग के एकांत का खंडन - पंचम भंग के एकान्त का खंडन - षष्ठ भंग के एकान्त का खंडन
- सप्तम भंग के एकान्त का खंडन ५७४ सप्त भंगो के सकलादेश और विकलादेश
स्वभाव का निरुपण
- क्रम और युगपत् का विवेचन ५७५ सकलादेश एवं विकलादेश साधक
कालादि आठ का निरुपण ५७६ सप्तभंगी में विशेष
- सप्तभंगी का उद्भव - स्वद्रव्यादि-परद्रव्यादि की विवक्षा
- सात भंग का विशेष विवेचन ५७७ भिन्नाभिन्नत्व की विवक्षा और उसके
आश्रय से सप्तभंगी ५७८ श्री महोपाध्यायजी म. का मत
- पदार्थ के दो पर्याय - अर्थपर्याय - व्यंजनपर्याय - अर्थपर्याय के सप्त विकल्प - व्यंजनपर्याय के दो भंग - सम्मतितर्क प्रकरण की साक्षी - जैनभाव की सार्थकता - स्याद्वाद के अभ्यास की आवश्यकता
परिशिष्ट-५ निक्षेपयोजन ५७९ निक्षेपयोजन ५८० निक्षेप का सामान्य स्वरुप ५८१ निक्षेप का फलवत्त्व ५८२ निक्षेप के चार प्रकार ५८३ नाम निक्षेप का स्वरुप ५८४ स्थापना निक्षेप का स्वरुप ५८५ द्रव्य निक्षेप का स्वरुप
प्र. नं. क्रम विषय
श्लोक नं. प्र. नं.. ११४१ ५८६ भाव निक्षेप का स्वरुप
११६८ ११४१ ५८७ नामादि निक्षेपो का परस्पर भेद
११६९ ११४१ ५८८ निक्षेपों का नयो के साथ योजना ११७६ ११४१ / ५८९ ऋजुसूत्र के अनुसार चारों निक्षेपों का स्वीकार११७८
५९० संग्रह और व्यवहार स्थापना नहीं मानते११४२ इस मत का खंडन
११८० 1५९१ जीव के विषय में निक्षेप का निरुपण ११८३
परिशिष्ट-६ मीमांसादर्शन का विशेषार्थ | ५९२ मीमांसादर्शन का विशेषार्थ
११८५ ११४८
५९३ प्रमाण का सामान्यलक्षण और ११४८
नैयायिक-गुरुमत-बौद्ध मत का खंडन ११८५ ११४८
११९१ |५९५ प्रत्यक्ष प्रमाण और तद्विषयक ११५३ नैयायिकादि मत निरास
११९१
११९८ ११५७ - व्याप्ति का स्वरुप
११९८ ११५८ - उपाधि का लक्षण
१२०० ११५८
- गुरुमत का निरास ११५८ - तर्क का लक्षण
१२०२ ११५८ - तर्काङ्ग पंचक
१२०२ ११६०
- आत्माश्रय-अन्योन्याश्रय-चक्रक११६१
अनवस्था-गौरव - लाघव-अनिष्ट प्रसंग का स्वरुप
१२०२ ११६२ - अनेक मतो का खंडन
१२०३ ११६२
- अनुमान की द्विविधता या त्रिविधता १२०८ ११६३
- अवयवत्रय का स्थापन और ११६३ अन्य मत का खंडन
१२१२ ११६३ - षट् प्रतिज्ञाभास
१२१३ ११६३
- चार हेत्वाभास और नैयायिक मत ११६६ का खंडन
१२१४
११५७ / ५९६ अनुमान
१२०१
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