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________________ षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक - ५५, जैनदर्शन है। उसके उदाहरण इस अनुसार से है । (१) जलचन्द्रान्नभश्चन्द्र "आकाश में चन्द्र का उदय हुआ (आकाश चन्द्रवाला है ), क्योंकि पानी में चन्द्र का प्रतिबिंब दिखाई देता है ।" इस अनुमान में पानी में पडा हुआ चन्द्र के प्रतिबिंबरुप हेतु अपने पक्ष में रहता नहीं है। अर्थात् पक्षधर्मता रुप न होने पर भी अविनाभाव के कारण सभी लोगो के द्वारा तादृश अनुमान किया जाता है और हेतु सत्य बनता है । १९९/८२२ (२) कृतिकोदयात् शकटोदय :- "रोहिणी नक्षत्र का एक मुहूर्त बाद उदय होगा, क्योंकि अभी कृतिकानक्षत्र का उदय है ।" इस अनुमान में "कृतिकोदय" हेतु पक्ष में रहता नहीं है । अर्थात् “पक्षधर्मता” रुप न होने पर भी अविनाभाव के कारण तादृशअनुमान किया जाता है और हेतु सत्य बनता I है। (३) पुष्पितैकचूततः पुष्पिताः शेषचूताः :- "सभी आम के पेडो में फूल आ गये है, क्योंकि वह आम का पेड है । जैसे कि, यह फूलोवाला आम का पेड ।" इस अनुमान में "पुष्पितआम्रत्व" हेतु पक्ष में न रहने पर भी = पक्षधर्मतारुप के अभाव में भी तादृशअनुमान लोगो के द्वारा किया जाता है और हेतु सत्य बनता है । (४) शशाङ्कोदयात् समुद्रवृद्धि :- "समुद्र में पानी की वृद्धि हो रही है । क्योंकि चन्द्र का उदय हुआ है ।" इस अनुमान में "चन्द्रोदय " हेतु पक्ष में न रहने पर भी = पक्षधर्मता रुप के अभाव में भी तादृशअनुमान लोगो के द्वारा किया जाता है और हेतु सत्य बनता है । (५) सूर्योदयात्पद्माकरबोध: - "कमल विकसित हो गये है, क्योंकि सूर्योदय हुआ है । " इस अनुमान में "सूर्योदय" हेतु पक्ष में न रहने पर भी = पक्षधर्मतारुप के अभाव में भी तादृश अनुमान किया जाता है और हेतु सत्य बनता है । (६) वृक्षाच्छाया:- “छाया ( छांव) गिर रही है, क्योंकि धूप भी है और वृक्ष भी है ।" इस अनुमान में वृक्षत्व हेतु पक्ष में रहा नहीं है, फिर भी तादृशअनुमान होता है और हेतु सत्य बनता है । ये उपरोक्त अनेकहेतुओ में पक्षधर्मता का विरह होने पर भी सभी लोगो के द्वारा अनुमान किया जाता है। इसलिए पक्षधर्मता आदि तीन रुप हेतु के अव्यभिचारी लक्षण नहीं है । शंका : कृतिकोदय हेतु में काल या आकाश को धर्मी बनाकर पक्षधर्मता कही जा सकती है । जैसे कि, आकाश या काल एक मुहूर्त में रोहिणी के उदय से मुक्त होगा। क्योंकि अभी उसमें कृतिका का उदय हो रहा है। समाधान: आपकी बात उचित नहीं है। क्योंकि, वैसा मानने में अतिप्रसंग अव्यवस्था होती है । कहने का मतलब यह है कि, आकाश या काल जैसे व्यापकपदार्थो को पक्ष बनाना चालु होगा तो कोई भी हेतु असत्य बनेगा ही नहीं, सभी हेतु सत्य बन जायेंगे और साध्य के गमक बन जायेंगे। जैसे कि, "शब्द Jain Education International For Personal & Private Use Only = www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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