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षड्दर्शन समुञ्चय भाग - २, श्लोक - ५२, जैनदर्शन
(असत्त्व) सिद्ध होता नहीं है।
उपरांत, स्त्रीयां वादादिलब्धि से रहित होने से भी विशिष्टसामर्थ्य से रहित नहीं है। क्योंकि मूककेवलियों के साथ व्यभिचार आता है। मूककेवली केवलज्ञान के बाद (वाद तो एक तरफ रखो) एक भी शब्द बोलते न होने पर भी मुक्ति में जाते है।
"अल्पश्रुत होने के कारण स्त्रीयां हीन है, इसलिए मोक्ष के लिए अयोग्य है।" यह पक्ष आपको बोलने योग्य ही नहीं है। क्योंकि मुक्ति की प्राप्ति द्वारा अनुमान से मालूम होते विशिष्ट सामर्थ्यवाले श्रीमाषतुषादि के साथ व्यभिचार आता है। श्री माषतुषादि मुनि अल्पश्रुतवाले होने पर भी मुक्ति में गये है। इसलिए मुक्ति की प्राप्ति द्वारा उसमें विशिष्टसामर्थ्य का अनुमान किया जा सकता है। (उनको श्रुत अल्प होने पर भी गुर्वाज्ञा का अखंड पालन, प्रज्ञापनीयता, सरलता आदि गुणो ने ऐसा विशिष्टसामर्थ्य पैदा कराया कि जिसके द्वारा केवलज्ञान पाकर मुक्ति में पहुंच गये।) इसलिए अल्पश्रुत होने मात्र से विशिष्ट सामर्थ्य का अभाव कहा नहीं जा सकता। इसलिए स्त्रीयों में विशिष्ट सामर्थ्य का असत्त्व होता नहीं है। ॥२॥ ___ "पुरुष द्वारा स्त्रीयों को वंदन किया जाता न होने से स्त्रीयां पुरुषो से हीन है" यह कथन भी योग्य नहीं है। क्योंकि... (१) स्त्रीयां सामान्यरुप से ही सर्वपुरुषो से अवंदनीय है या (२) अपने से कोई विशिष्ट गुणीपुरुष की अपेक्षा से अवंदनीय है ? वह आपको कहना चाहिए। ___ उसमें प्रथम पक्ष तो असिद्ध है। क्योंकि तीर्थंकर की मातायें इन्द्रो के द्वारा भी पूजनीय होती है, तो बाकी के पुरुषो की तो क्या बात करे ?
दूसरा पक्ष भी अयोग्य है। क्योंकि गणधर भी तीर्थंकरो के द्वारा अवंदनीय है। इससे गणधर भगवंतो को भी हीन कहना पडेगा और हीन होने से मोक्ष में नहीं जा सकेंगे।
तथा चतुर्विधसंघ तीर्थंकरो के द्वारा भी वंदनीय होता है। साध्वीजीयां भी उस चतुर्विधसंघ की अन्तर्गत होने के कारण तीर्थंकरो से वंदनीय स्वीकार की गई हुई है। तो स्त्रीयों में किस तरह से हीनत्व है? इस तरह से स्त्री हीन होने से मोक्षगमन में योग्य नहीं है, उस पक्ष का निराकरण हुआ। (३)
"स्त्रीयां अध्ययन करा सकती नहीं है या दूसरो को कर्तव्य की सारणा इत्यादि करा सकती नहीं है। इसलिए पुरुषो से हीन है।" वह पक्ष भी उचित नहीं है। क्योंकि (वैसा मानने में तो) आचार्यो की ही मुक्ति होगी, दूसरे अन्य साधु-शिष्यो की मुक्ति नहीं हो सकेगी। क्योंकि दूसरे शिष्य-साधु सारणा इत्यादि करते नहीं है। इस तरह से स्त्रीयों में हीनत्व सिद्ध करता चौथा पक्ष भी उचित नहीं है। ___ "स्त्रीयों में ऋद्धि न होने से पुरुषो से हीन है।" यह पक्ष भी उचित नहीं है। क्योंकि (ऋद्धिरहित) कुछ दरिद्रो की भी मुक्ति सुनी जाती है और महाऋद्धिवाले कुछ चक्रवर्तीयों की भी मुक्ति का अभाव सुना जाता है।
इस प्रकार ऋद्धि के अभाववाला पक्ष अयोग्य है। "स्त्रीयों में मायादि का प्रकर्ष होने से पुरुषो से हीन है" यह पक्ष असत्य है। क्योंकि पुरुष ऐसे नारद,
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