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षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक - ५२, जैनदर्शन
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सर्वपुरुषाणां १ केषाञ्चिद्वा २ । न तावत्सर्वेषां, दृश्यन्ते हि बहवो वह्निप्रवेशादिभिः शरीरमपि त्यजन्तः । अथ केषाञ्चित्, तदा वस्त्रमपि केषाञ्चिद्दुस्त्यजमिति न परिहार्य शरीरवत् । अथ मुक्त्यङ्गत्वेनेति पक्षः, तर्हि वस्त्रस्यापि तथाविधशक्तिविकलानां स्वाध्यायाधुपष्टम्भकत्वेन शरीरवन्मुक्त्यङ्गत्वात्किमिति परिहारः ? अथ धारणमात्रेण, एवं सति शीतकाले प्रतिमापन्नं साधुं दृष्ट्वा केनाप्यविषह्योपनिपातमद्य शीतमिति विभाव्य धर्मार्थिना साधुशिरसि वस्त्रे प्रक्षिप्ते सपरिग्रहता स्यात् । अथ यदि स्पर्शमात्रेण, तदा भूम्यादिना निरन्तरं स्पर्शसद्भावात्सपरिग्रहत्वेन तीर्थकरादीनामपि न मोक्षः स्यादिति लाभमिच्छतो भवतो मूलक्षतिः सञ्जाता । अथ जीवसंसक्तिहेतुत्वेन, तर्हि शरीरस्यापि जीवसंसक्तिहेतुत्वात्परिग्रहहेतुत्वमस्तु, कृमिमण्डूकाद्युत्पादस्य तत्र प्रतिप्राणिप्रतीतत्वात् । अथास्ति, परं यतना तत्र विधीयते, तेनायमदोष इति चेत् ? तर्हि वस्त्रेऽप्ययं न्यायः किं काकैक्षितः ? वस्त्रस्यापि यतनयैव सीवनक्षालनादिकरणेन जीवसंसक्तिनीवारणात्, तन्न वस्त्रसद्भावेन चारित्रासम्भवः । व्याख्या का भावानुवाद : अब इस विषय में दिगंबरो ने अपनी युक्तियां प्रकट की है वह देखेंगें। पूर्वपक्ष ( दिगंबर): उपर कहे हुए स्वरुपवाला मोक्ष चाहे हो, उसमे हमको दिक्कत नहीं है। क्योंकि हम भी मोक्ष का स्वरुप वैसा ही मानते है। परंतु वैसे स्वरुपवाला मोक्ष पुरुष को ही होता है। स्त्री को होता नहीं है। वह इस अनुसार से है - "स्त्रीयां मोक्ष का भाजन होती नहीं है। क्योंकि पुरुषो से हीन होती है। जैसे नपुंसक पुरुषो से हीन होने से मोक्ष का भाजन होता नहीं है। वैसे स्त्रीयां भी पुरुषो से हीन होने से मोक्ष का भाजन नहीं हो सकती।
उत्तरपक्ष ( श्वेतांबर): (आपने आपके अनुमान में स्त्रीयों में मोक्षाभाव सिद्ध करने के लिए पुरुष से स्त्रीयां हीन है ऐसा हेतु दिया है। तो हमारा प्रश्न है कि) स्त्रीयों में पुरुषो से हीनत्व (१) क्या चारित्र आदि के अभाव के कारण से है ? (२) विशिष्ट सामर्थ्य के अभाव के कारण से है ? (३) पुरुष साधु स्त्रीयों को वंदन करते नहीं है, उसके कारण से है? या (४) सारणा, वारणा आदि नहीं करने से है ? या (५) उनको लौकिकऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होती नहीं, वह कारण है ? या (६) माया आदि का प्रकर्ष होने के कारण से है ?
उपरोक्त छ पक्षो में "चारित्र आदि के अभाव के कारण स्त्रीयां पुरुष से हीन है - यह प्रथम पक्ष विचार करने के लिए भी संभव नहीं है। क्योंकि (आप बताये कि) स्त्रीयों में चारित्र का अभाव क्यों है। (१) स्त्रीयां कपडे को धारण करती है (सचेलक है) इसलिए चारित्र का अभाव है ? या (२) स्त्रीयों में मंद सत्त्व होने के कारण चारित्र का अभाव है ?
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