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________________ ___षड्दर्शन समुच्चय, भाग-२ (१४-६१४) ४९६ ४९७ ४९८ ४८१ २ ४८३ ४९९ ५०३ ४८५ क्रम विषय श्लोक नं. २९५ चित्त की पाँच अवस्थायें - क्षिप्तावस्था-मूढावस्था-विक्षिप्तावस्थाएकाग्रावस्था - निरुद्धावस्था २९६ पाँच प्रकार की वृत्तियाँ २९७ (१) प्रमाण २९८ (२) विपर्यय २९९ (३) विकल्प ३०० (४) निद्रा ३०१ (५) स्मृति ३०२ निरोध के उपाय ३०३ अभ्यास ३०४ वैराग्य के दो प्रकार ३०५ अपर वैराग्य का स्वरुप ३०६ पर वैराग्य का स्वरूप एवं फल ३०७ संप्रज्ञात योग का स्वरुप ३०८ सवितर्क समाधि ३०९ सविचार समाधि ३१० सानंद समाधि ३११ सास्मिता समाधि ३१२ असंप्रज्ञात योग ३१३ योग के ९ अंतराय ___ - दुःखादि पाँच अंतराय ३१४ अभ्यास का उपसंहार ३१५ क्लेशों के नाम ३१६ अविद्या का स्वरुप - अस्मिता का स्वरुप - राग का स्वरुप - द्वेष का स्वरुप - अभिनिवेश का स्वरुप - सूक्ष्म क्लेश के नाश का उपाय पृ. नं. | क्रम विषय श्लोक नं. पृ. नं.. ४७७ | - स्थूल क्लेशो के नाश का उपाय |३१७ योग के आठ अंग ४९८ ४७७ - योग का फल-कैवल्यप्राप्ति ४७८ - प्रमाण विचार ४९७ ४८० परिशिष्ट-३ कर्मवाद ४८० |३१८ जैनदर्शन का कर्मवाद ४८१ ३१९ कर्मवाद के सिद्धांत ४९८ ३२० कर्म का अर्थ ४९८ ३२१ कर्मबन्ध के कारण ४९९ ३२२ कर्मबन्ध की प्रक्रिया ४८३ | ३२३ कर्म की मूल आठ प्रकृतियाँ ४९९ ४८३ |३२४ आठ कर्म की उत्तरप्रवृत्तियाँ ५०० ४८४ ३२५ कर्मो की स्थिति ५०३ ४८४ ३२६ कर्मफल की तीव्रता-मन्दता ३२७ कर्मों के प्रदेश ५०३ | ३२८ कर्म की विविध अवस्थाएँ ५०४ ३२९ बंधन-सत्ता-उदय-उदीरणा ५०४ ३३० उद्वर्तना ५०५ ३३१ अपवर्तना ५०५ ३३२ संक्रमण ३३३ उपशमना ३३४ निधत्ति ५०६ ४९१ ४९२ ३३५ निकाचना-अबाध ५०६ ___ - कर्म और पुनर्जन्म ५०६ ४९३ परिशिष्ट-४ जैनदर्शन का ग्रंथकलाप । ३३६ जैनदर्शन का ग्रंथकलाप ५०७ ४९४ ३३७ श्री जिनागमो की सारांश माहिती ५०७ | ३३८ पू. महोपाध्याय श्री यशोविजयजी विरचित ग्रंथपरिचय ४९५ | ३३९ पू.आ.भ.श्री हरिभद्रसूरिजी विरचित ग्रंथपरिचय ५१९ ४९६ ४८६ ४८७ ४८७ ५०५ ५०५ ४८७ ४९४ ४९५ ४९५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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