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________________ षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक, ४८-४९, जैनदर्शन १०१/७२४ सचेनत है । क्योंकि वनस्पति में होता बाल, कुमार, वृद्धा स्थापन दूसरी तरह से संगत नहीं होता है। जैसे कि, स्त्री का शरीर । (२) वनस्पतियां सचेतन है । क्योंकि वनस्पति की प्रतिनियतवृद्धि दूसरी तरह से संगत नहीं होती है। जैसे कि, स्त्री का शरीर । (३) वनस्पतियां सचेतन है। क्योंकि सोना (निद्रा लेना), जागना, स्पर्शादि के कारण उल्लास पानासंकोच पाना । दूसरे के सहारे आरोहण करना (उपर चढना) इत्यादि अनेक विशिष्ट क्रियायें दूसरी तरह से संगत नहीं होती है, जैसे कि, स्त्री का शरीर । (४) वनस्पतियां सचेतन है। क्योंकि अवयवो के छेदे जाने से म्लान होना, दूसरी तरह से संगत होना नहीं है। जैसे कि, स्त्री का शरीर । (५) वनस्पतियां सचेतन है। क्योंकि प्रतिनियत प्रदेशो में से ग्रहण किया जाता आहार दूसरी तरह से संगत नहीं होता। जैसे कि, स्त्री का शरीर । (६) वनस्पतियां सचेतन है। क्योंकि वृक्ष का आयुर्वेद ने कहा हुआ आयुष्य दूसरी तरह से संगत होता नहीं है। जैसे कि, स्त्री के शरीर का आयुष्य । (७) वनस्पतियां सचेतन है। क्योंकि वृक्ष में आयुर्वेद में कही हुई इष्ट-अनिष्ट आहार निमित्तक वृद्धि हानि दूसरी तरह से संगत होती नहीं है। जैसे कि, इष्ट-अनिष्ट आहारनिमित्तक वृद्धि हानि होनेवाला स्त्री का शरीर । (८) वनस्पतियां सचेतन है। क्योंकि वनस्पति में आयुर्वेद में कहे हुए (वनस्पति को होते हुए) वे वे रोग दूसरी तरह से संगत होते नहीं है। जैसे कि स्त्री के शरीर के रोग । (९) वनस्पतियां सचेतन है। क्योंकि वनस्पति में औषध के प्रयोग से वृद्धि, हानि, खरोच भर जाना । टूटे हुए भागो का जुड जाना, दूसरी तरह से संगत नहीं होता है। जैसे कि, औषधप्रयोग से वृद्धि हानि इत्यादिवाला स्त्री का शरीर । (१०) वनस्पतियां सचेतन है। क्योंकि वनस्पति के शरीर के प्रतिनियत विशिष्टरस, वीर्य, स्निग्धता, रुक्षता दूसरी तरह से संगत होती नहीं है। जैसे कि, स्त्री का विशिष्ट शरीर । (११) वनस्पतियां सचेतन है। क्योंकि उसको विशिष्टदोहद होते है। जैसे कि, स्त्री के शरीर में होते विशिष्टदोहद। इस तरह से पक्ष के साथ प्रत्येक हेतुओ को जोडने से उपरोक्त अनुमान प्रयोगो से वनस्पतियां सचेतन है। वह सिद्ध होता है। अथवा उपरोक्त कहे हुए सभी हेतुओ का संग्रह करके अनुमान प्रयोग इस अनुसार से है - वनस्पतियां सचेतन है। क्योंकि वनस्पति में जन्म, वृद्धावस्था, मृत्यु, रोगादि समुदाय का सद्भाव है। जैसे स्त्री में जन्मादि के सद्भाव से उसकी सचेतना सिद्ध है। वैसे वनस्पति में भी जन्म, मृत्यु इत्यादि के सद्भाव से सचेतना सिद्ध होती है। शंका : दहीं भी उत्पन्न होता है फिर भी वह अचेतन है, सचेतन नहीं है। इसलिए आपका हेतु व्यभिचारी बनता है। जो उत्पन्न हो, वह सचेतन हो वैसा कोई नियम नहीं है। समाधान : हमने केवल उत्पन्न होता है, वह सचेतन है वैसा नहीं कहा, परंतु जो उत्पन्न हो, मृत्यु प्राप्त करे, वृद्धावस्था पाये इत्यादि समुदित जन्मादि को सचेतना के प्रति हेतु बनाया है। इसलिए हमारा हेतु व्यभिचारी नहीं है, क्योंकि दहीं मात्र उत्पन्न होता है, परंतु मृत्यु पाता नहीं है या वृद्धावस्था भी पाता नहीं है, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004074
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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