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________________ ७० षड्दर्शन समुच्चय, भाग-१, भूमिका परिशिष्ट में दी गई हैं । पू.आ.भ. श्री वादिदेवसूरिजी ने "प्रमाणनयतत्त्वालोक" नाम के दर्शनिक ग्रंथ की रचना की हैं। उसमें प्रमाण, नय और सप्तभंगी की विस्तृत विचारणा की गई हैं । काशीस्थ पंडितो के द्वारा न्यायाचार्य-न्यायविशारद पदवी से विभूषित महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराजा ने अनेक ग्रंथो की रचना की थी । उसमें से हाल में ६० ग्रंथ उपलब्ध होते हैं । उसकी सूचि तथा विषय निदर्शन परिशिष्ट में देखना। प्रस्तु ग्रंथकार के टीकाकार तार्किकरत्न श्री गुणरत्नसूरीश्वरजी महाराजा ने भी षड्दर्शन-समुच्चय की बृहद् वृत्ति आदि अनेक ग्रंथो की रचना की है, उसकी नोंध भूमिका में आगे ही बतायेंगे । जैनदर्शन में 'नवांगी टीकाकार' के रूप में प्रसिद्ध पू.आ.भ.श्री अभयदेवसूरीश्वरजी महाराजा ने आगम ग्रंथो के उपर विस्तृत टीकाओं की रचना की हैं। चौदह पूर्वधर महर्षि श्री भद्रबाहुस्वामी ने अनेक आगम ग्रंथो के उपर नियुक्तियों की रचना की हैं। उसी तरह से अन्य पू. जैनाचार्यों ने आगम ग्रंथो के उपर चूर्णि, अवचूरि, भाष्य और टीकाओं की रचना की है । उसके विषय में प्राप्त जानकारी परिशिष्ट में दी गई हैं । उसके सिवा भी पूज्य जैनाचार्यों ने अनेक प्रकरण ग्रंथो की रचना की हैं । उसकी संख्या हजारो से अधिक हैं । उन सभी के नाम और विषय यहाँ संगृहीत करना संभव नहीं हैं । फिर भी परिशिष्ट में शक्यांश से ज्यादा प्रसिद्ध ग्रंथो की सूची देने का प्रयत्न किया हैं । वाराणसी स्थित “पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान (जैनाश्रम) हिन्दु युनिवर्सिटी" द्वारा प्रकाशित “जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग १ से ६" में जैनदर्शन के ग्रंथो की विस्तृत माहिती दी गई है । वे ग्रंथ हिन्दी भाषा में ही हैं । तदुपरांत गुर्जर भाषा में हीरालाल रसिकदास कापडिया रचित "जैन संस्कृत साहित्य का इतिहास भाग १ से ३" में भी जैनदर्शन के संस्कृत साहित्य का विस्तृत मार्गदर्शन उपलब्ध हैं । ____ श्री जैनाचार्यों ने ध्यान, अध्यात्म, योग, कथा, काव्य, न्याय, कोश, व्याकरण, नाटक और गणित आदि विषयो के उपर भी अपनी कलम चलाई है और विपुल साहित्य का सर्जन किया है । अन्य कोई भी दर्शन में अनुपलब्ध ऐसे कर्म विषयक साहित्य की विपुल प्रमाण में रचना जैनदर्शन में हुई है । उसके सामने आज पर्यन्त किसी ने विरोध नहीं बताया हैं । इतना ही नहीं, उस साहित्य को आदरदृष्टि से देखा जाता हैं । कर्मविषयक ग्रंथ श्वेतांबर और दिगंबर दोनों संप्रदाय के उपलब्ध होते हैं, उसकी विषय सूची परिशिष्ट में दी गई हैं । जैनदर्शन के दार्शनिक ग्रंथ : दर्शन प्रभावक ग्रंथ के रुप में जिसकी गणना होती है वह “सम्मति तर्क" ग्रंथ की रचना पू.आ.भ.श्री सिद्धसेन दिवाकरसूरीश्वरजी महाराजा ने की हैं। उसके उपर पू.आ.भ.श्री अभयदेवसूरिजी ने विस्तृत टीका की रचना की हैं । टीका में अनेक वादो का परामर्श हुआ है । दार्शनिक जगत में विवादास्पद लगभग सभी विषयो की परीक्षा की गई हैं और स्याद्वाद शैली से पदार्थो का यथार्थ प्रतिपादन किया गया है । दार्शनिक अभिगमो का सापेक्षभाव से समन्वय करके पदार्थ के सर्वांगीण स्वरूप को स्पष्ट किया गया हैं। पू.आ.भ.श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराजा ने “षड्दर्शन समुञ्चय" और "शास्त्रवार्ता समुञ्चय" ये दो महत्व के दार्शनिक ग्रंथो की रचना की हैं । षड्दर्शन समुञ्चय के उपर पू.आ.भ.श्री गुणरत्नसूरिज कृत 'बृहद्वृत्ति' और पू.आ.भ.श्री सोमतिलकसूरिजी कृत 'लघुवृत्ति' उपलब्ध हैं । “शास्त्रवार्ता समुञ्चय" ग्रंथ के उपर पू. महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराजा ने “स्याद्वाद कल्पलता" नामकी नव्यन्यायगर्भित विस्तृत टीका की रचना करके अनेक वादो की समीक्षा की है । उसके उपर न्यायाचार्य श्री बदरीनाथ शुक्लने हिन्दी व्याख्या रची है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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