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षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट- ४, जैन दर्शन का ग्रंथकलाप परिचय : इस आगम में छ: उद्देशा है । (१) पू. आ. श्री भद्रबाहुस्वामी विरचित ६२५ श्लोक प्रमाण निर्युक्ति । (२) श्री संघदासगणि कृत ७६०० श्लोक प्रमाण लघुभाष्य । (३) १२००० श्लोक प्रमाण बृहद्भाष्य । (४) ११००० श्लोक प्रमाण चूर्णि । (५) पू. आ. मलयगिरि महाराजा रचित ४६०० श्लोक प्रमाण बाकी के ३८००० श्लोक प्रमाण पू. आ. श्री क्षेमकीर्तिसूरिजी विरचित बृहत् (बडी) टीका (कुल ४२६०० श्लोक प्रमाण) (६) १४०० श्लोक प्रमाण लघुटीका । (७) मूल ४७३ श्लोक प्रमाण है।
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४. श्री व्यवहार सूत्र (३७) : : यह आगम दंडनीति शासन की तरह आराधक पुण्यात्माओ को प्रमादादि क से लगते दोषों के निवारण की (तत् तत् जीवो की योग्यता को लक्ष में रखकर लघु-गुरु) मार्मिक प्रक्रिया यथायोग्य बताई हैं। संयमी जीवन की सारमयता के यथार्थ वर्णन के साथ प्रासंगिक नीचे बताई बातो का वर्णन किया है ।
गणनायक के गुण, छः पदवी की योग्यता, प्रवृत्ति की मर्यादा, पाँच व्यवहार, आचार्य-शिष्य के चार-चार प्रकार, स्थविर शिष्य की तीन तीन भूमिकायें ।
परिचय : ६४०० श्लोक प्रमाण भाष्य, १२००० श्लोक प्रमाण चूर्णि, ३४००० श्लोक प्रमाण वृत्ति, ५२४०० श्लोक प्रमाण अवचूरि, मूल ३७३ श्लोक प्रमाण है।
५. श्री पंचकल्प भाष्य (३८) : इस ग्रंथ का मूल वि.सं. १६२२ तक उपलब्ध था । बाद में विच्छेद हुआ ऐसा माना जाता है । उसमें जीवन शुद्धि के लिए तीर्थंकर भगवंतोने जो पाँच प्रकार के व्यवहारो का निर्देश किया है उसका सुंदर वर्णन । आत्मशुद्धि के मार्मिक उपाय इस आगम में बताये हैं ।
परिचय : इस आगम का मूल १९३३ गाथा का है । आज ( हाल में) उपलब्ध नहीं हैं ।
(१) पू. श्री संघदासगणी विरचित ३१८५ श्लोक प्रमाण भाष्य (२) ३२७५ श्लोक प्रमाण चूर्णि है।
६. श्री महानीशीथ सूत्र ( ३९ ) : यह आगम संयय जीवन की विशुद्धि के उपर बहोत ही जोर देता है । सरलता, आचार शुद्धि, भूल को सुधारने की तत्परता, वैराग्य भाव और आज्ञाधीनता आदि बातो पर आगम बहोत ही जोर
ता है । नीचे बताई हुई बातो का प्रासंगिक रुप से वर्णन किया है ।
द्रव्यस्तव-भावस्तव का यथार्थ स्वरूप, उपधान का स्वरूप तथा महत्ता, नमस्कार महामंत्र का अद्भूत वर्णन, गुरुकुल वास का महत्त्व, गच्छ का स्वरूप, प्रायश्चित्तो का मार्मिक स्वरूप, आलोचना विधि आदि ।
परिचय : इस आगम के आठ विभाग है । जिसमें प्रथम के छः अध्ययन हैं । बाकी के दो चूलिका कहे जाते है । कुल मिला के ८३ उद्देशा । इस आगम का मूल ४५४८ श्लोक का है । श्री महानीशीथ सूत्र की प्राचीनकाल में तीन वाचनायें थी । (१) ३५०० श्लोक प्रमाण लघुवाचना, (२) ४२०० श्लोक प्रमाण मध्यम वाचना, (३) ४५४८ श्लोक प्रमाण बृहद् वाचना। हाल में बृहद् वाचना उपलब्ध है । इस आगम के उपर चूर्णि, भाष्य या टीका कुछ उपलब्ध नहीं है ।
४ मूलसूत्र :
१. श्री आवश्यक सूत्र (४०) : यह आगम आत्मोन्नति के लिए बहोत ही उपयोगी पदार्थो से भरपूर है । साधु श्रावक को प्रतिदिन अवश्य करने लायक हैं । कर्तव्यो का विस्तार से वर्णन है । प्रासंगिक रूप से पाप प्रवृत्तिओं का परिहार, दोषो की शुद्धि-प्रायश्चित्त आदि बाते भी बहोत ही व्यवस्थित रुप से इस आगम में बताई गई है।
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