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षड्दर्शन समुच्चय भाग-१, परिशिष्ट-१, वेदांतदर्शन
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हैं। ("वत्सं बधान'' इस वाक्य में योग्यता हैं। क्योंकि यहाँ वत्सकर्मक बंधन तात्पर्यविषयीभूत संसर्ग हैं; वह किसी प्रमाण से बाधित नहीं हैं। परंतु 'वह्निना सिञ्चेत्' स्थान पे “वह्निकरणक सेचन'' रुप अर्थ वक्ता के तात्पर्य का विषय होने पर भी वह करणत्व संसर्ग का प्रत्यक्षादि प्रमाणो से बाध होता हैं। क्योंकि अग्नि दाहक हैं, उससे विरुद्ध आर्दीकरण क्रिया उसमें संभवित नहीं हैं। इसलिए) तादृशसंसर्ग का बाध होने से "वह्निना सिञ्चेत्", "जलेन दहेत्" इत्यादि वाक्यो में योग्यता नहीं हैं।
• आसत्ति :- आसत्तिश्चाव्यवधानेन पदजन्यः पदार्थोपस्थितिः । पदजन्य पदार्थ की अव्यवधान से उपस्थिति होना उसको ही आसत्ति कही जाती हैं। जो क्रिया-कारकादि पदसमूह वाक्य से शाब्दबोध होता हैं, उस वाक्य के वे पद अन्य पदो के व्यधानरहित होने चाहिए। जैसे कि, "गाम्" और "आनय" ये दोनो पद एक के बाद एक ऐसे क्रम से बीच में अन्य पद के व्यवधान बिना बोले गये हो तो ही वाक्यार्थ का बोध होता हैं । यदि "गाम्" पद बोलकर मौन हो जाये अथवा दूसरा कोई अनुसंधानरहित पद बोल दे और बाद में "आनय'' पद बोले तो ऐसे व्यवधान सहित के वाक्य से अर्थबोध नहीं हो सकता हैं। इसलिए आसत्ति शाब्दबोध में कारण हैं।
• तात्पर्यज्ञान :- तत्प्रतीति- जनन योग्यत्वं तात्पर्यम् । xxxxx--- तच्च तात्पर्य वेदे मीमांसापरिशोधितन्यायादेववधार्यते; लोके तु प्रकरणादिना। __ वाक्य में वक्ता को विवक्षित अर्थ का ज्ञान करा देने की योग्यता को तात्पर्य कहा जाता हैं। "गेहे घटः" घर में घट हैं, यह वाक्य बोलने से वक्ता को उस वाक्य के अर्थ का ज्ञान हो या न हो परंतु उस वाक्य में गृह और घट के आधार-आधेयभावरुप संबंध का ज्ञान करा देने की योग्यता रहती हैं । उस कारण से श्रोता को विवक्षित अर्थ का बोध होता हैं। सारांश में, वाक्य में गह और घट के आधाराधेयभाव रुप संबंध का ज्ञान करा देने की जो योग्यता रहती हैं , उसका ज्ञान ही तात्पर्यज्ञान हैं। उस तात्पर्यज्ञान से ही सर्वत्र शाब्दबोध होता हैं।
यह तात्पर्य वेद वाक्यो में मीमांसा द्वारा परिशोधित न्यायो से ही निश्चित होता हैं । परंतु लौकिक वाक्यो में प्रकरणादि द्वारा तात्पर्य का निश्चय होता हैं।
विशेष में लौकिक वाक्य तो प्रमाणान्तरों से ज्ञात अर्थ का ही अनुवाद करते होते हैं, परंतु वैदिक वाक्यो का अर्थ प्रमाणान्तर से अज्ञात होने के कारण अनुवादरुप नहीं हैं। ___ पदजन्यपदार्थ की उपस्थिति शाब्दबोध में कारण हैं, यह बात देखी। अब पदार्थ के दो प्रकार बताते हुए कहते हैं कि -
पदार्थश्च द्विविधः- शक्यो लक्ष्यश्चेति । तत्र शक्तिर्नाम पदानामर्थेषु मुख्या वृत्तिः, यथा घटपदस्य पृथुबुध्नोदराद्याकृतिविशिष्टे वस्तुविशेषे वृत्तिः । (८८ सा च शक्तिः पदार्थान्तरम् । सिद्धान्ते कारणेषु ___ (८८) सा च शक्तिरिति। नैयायिकास्तावत् संकेत एव शक्ति: न तु पदार्थान्तरम् प्रमाणाभावात् । स च संकेत: 'अस्मात् पदात् अयमों बोद्धव्यः इतीच्छारुपः । तत्रापि न संकेतमात्नं शक्तिः, किन्तु ईश्वरसंकेत एवेति न पामरादिसंकेतितानामपभाषितानामपि शक्तत्वम् । स चेश्वरसंकेतो न ईश्वरसंकेतत्वेन गृह्यमाणः कारणम् । किन्तु संकेतत्वेन । अतः अविदुषामपि घटादिशब्दात शाब्दबोधोपपत्ति आधुनिकसंकेतितानां चैत्रादिशब्दानां 'द्वादशेऽहनि पिता नाम कुर्यात्' इति सामान्यतः ईश्वरसंकेतितत्वमस्त्येवेति न दोष इति वदन्ति ।
तदिदं मीमांसका न सहन्ते । तेषामयमाशयः अभिधा नाम शक्तिः । सा च पदार्थान्तरम् । कारणेषु कार्यानुकूलशक्तिमात्रमतिरिक्तमङ्गीकरणीम् । वह्निर्मणिसमवहितो दाहं न जनयति, मण्यसमवहित: उत्तेजकमण्यन्तरसमवहितो वा दाहं जनयति, इत्यत्र हि शक्तिसत्त्व-तद्विनाशौ एव नियामकौ सा च शक्तिः न द्रव्यं, गुणः, कर्मादिकं वा, तद्गुणराहित्यादित्यतिरिक्तः पदार्थः । एवं च शब्दनिष्ठा शक्तिरपि अतिरिक्तैव अंगीकरणीया । कस्मिन् पदे कीदृशार्थबोधनानुकूलशक्तिर्विद्यते इति नु व्यावहारादिसिद्ध
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