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________________ २८८ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, सांख्यदर्शन का विशेषार्थ परन्तु श्री गौड, श्री माठर और श्री जय सत्त्व गुण को उपर कहे हुए स्त्री के दृष्टांत से, रजोगुण को क्षत्रिय के दृष्टांत से और तमोगुण को बादलो के उदाहरण से समजाते है । रुपयौवनकुलसम्पन्न स्त्री यह सत्त्वगुण के प्रकार की है। क्षत्रिय वह राजस् है। वह स्वामी या शिष्टो को सुख देता है। शत्रुओ को दुःख और दुष्टो को मोह लगाता है। श्यामल बादल वह तामस् है । गर्मी से संताप पानेवाले को सुख देता है। किसानो को प्रवृत्ति में जोडता है और विरही प्रेमीओ को मोह लगाता है गुणो के ऐसे प्रकार के मिश्रण से जगत के वैविध्य का भी खुलासा दीया जा सकता है। सत्त्वादि तीन गुणो की साम्यावस्था-मूलप्रकृति को अव्यक्त भी कहा है। अत्यंत सूक्ष्म होने से इन्द्रिय अगोचर है। अतः बुद्धि के द्वारा उसका प्रत्यक्ष नहीं होता, अपितु अनुमान प्रमाण से उनकी सिद्धि होती है । क्योंकि महत्तत्त्वादि इस अव्यक्त के कार्य है और सत्कार्यवाद का सिद्धांत से कारण के अभाव में कार्य की उत्पत्ति हो नहीं सकती। अतः मूलप्रकृति रुप कारण की सिद्धि होती है। इसी की प्रस्तुति के लिए अग्रिम कारिका का उल्लेख करते है। अविवेक्यादेः सिद्धिस्त्रैगुण्यात्तद्विपर्ययाभावात् । कारणगुणात्मकत्वात्कार्यस्यऽव्यक्तमपि सिद्धम् ॥१४॥ भावार्थ : अविवेकपन इत्यादि धर्मो की सिद्धि तीन गुण होने के कारण होती है। क्योंकि (अविवेकीपन इत्यादि धर्म) के विरोधी (ऐसे पुरुष) में उसका अभाव है। और कार्य में कारण के गुण होते है। इसलिए अव्यक्त भी सिद्ध होता है। कारिका - १४॥ (इस कारिका को समजने के लिए ११वीं कारिका में जो बात कही है उसे याद करनी पडेगी। ११वीं कारिका में व्यक्त और अव्यक्त का साम्य और उन दोनो से पुरुष का वैधर्म्य बताया गया है। व्यक्त और अव्यक्त के बीच छ: लक्षण समान है । (१) अविवेकता, (२) त्रैगुण्य, (३) विषयता, (४) सामान्यता, (५) अचेतनत्व, (६) प्रसवधर्मिता । परन्तु ये छ: के छ: लक्षण, उन दोनो में है इसका प्रमाण क्या है ? उसका प्रमाण कारिका - १४ में बताया गया है। "अविवेकि" इत्यादि छ: लक्षण सिद्ध हो सके वैसे है। क्योंकि जो व्यक्त है उसमें सत्त्व, रजस् और तमस् ये तीनो गुण उसके सुख, दुःख और मोह के माध्यम से रहे हुए हम सब महसूस कर सकते है। इसलिए व्यक्त तो त्रिगुणात्मक है, वह प्रत्यक्ष से ही सिद्ध हो जाता है। वैसे भी, जहाँ त्रैगुण्य हो वहाँ बाकी के पाँच का विपर्यय (अभाव) हो ऐसा एक दृष्टांत भी मिल सके वैसा नहीं है। वैसे व्यक्त में तो इन छ: लक्षणो का अस्तित्व आसानी से सिद्ध हो सकता है। श्री वाचस्पति मिश्र कहते है कि, अविवेकि इत्यादि का जहाँ सम्पूर्ण अभाव हो, वहां त्रैगुण्य का भी अभाव है। जैसे कि, पुरुष में। पुरुष त्रिगुण से पर है। और उसमें बाकी के पाँच लक्षण भी नहीं है। परन्तु अव्यक्त (प्रधान) के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। क्योंकि वह तो त्रिगुणात्मक है ही और इसलिए बाकी के पांच लक्षण भी उसमें सिद्ध होते है। ___ व्यक्त और उसके उपर बताये गये छ: लक्षण तो स्पष्ट महसूस किये जा सकते है। उसका विनियोग अव्यक्त में भी किया गया है। परन्तु प्रश्न यह है कि अव्यक्त नाम का कोई स्वतंत्रतत्त्व अस्तित्व रखता है क्या ? जब तक वह सिद्ध न हो तब तक उपर के छ: लक्षणो का विनियोग करना निरर्थक है। कारिका – १४ के उत्तरार्ध में अव्यक्त के अस्तित्व को सिद्ध करते है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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