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________________ षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक - ३१, नैयायिक दर्शन २१३ कारण नहीं है या दायां सिंग बायें सिंग का कारण नहीं है, वैसे साध्य और साधन एकसाथ हो तो एक में साध्य का व्यपदेश और एक में साधन का व्यपदेश नहीं हो सकता है। (१७) (अ)अर्थापत्तिसमा जाति : अर्थापत्ति से खण्डन करना, उसे अर्थापत्तिसमा जाति कहा जाता है । जैसे कि, यदि अनित्य (घट) के साधर्म्य द्वारा कृतकत्व हेतु से शब्द अर्थापत्ति से अनित्य प्राप्त (सिद्ध) हो, तो नित्य के साधर्म्य से शब्द अर्थापत्ति से नित्य होगा। और शब्द का नित्य आकाश के साथ साधर्म्य अमूर्तत्व है। इसलिए नित्य आकाश के साधर्म्य द्वारा अमूर्तत्व हेतु से शब्द नित्य है। ऐसा अर्थापत्ति से प्राप्त होता है। यह जाति साधर्म्यसमा जाति के समान होने पर भी उद्भावन के प्रकार के भेद के कारण ही यह अर्थापत्तिसमा जाति भिन्न कही गई है। (साधर्म्यसमा जाति में वादिप्रयुक्त प्रयोग में प्रतिवादि साधर्म्य के द्वार से प्रतिहेतु द्वारा दोष का उद्भव करता है। जब कि अर्थापत्तिसमा जाति में वादिप्रयुक्त प्रयोग में साधर्म्य के द्वार से जो सिद्ध किया हो, उससे विरुद्ध प्रतिवादि साधर्म्य के द्वार से अर्थापत्ति से सिद्ध करते है। इस प्रकार दोनो में साधर्म्य के द्वार से खंडन होने पर भी जो दोष के उद्भावन की भिन्नता है वह समजी जा सकती है। (१८) (ब)अविशेषसमा जाति : सामान्यधर्म बताने के द्वारा जिसे खंडन किया जाये, उसे अविशेषसमा जाति कहा जाता है। जैसे कि, यदि शब्द और घटका एक धर्म कृतकत्व इच्छित है, तो समानधर्म के योग से वे दोनो सामान्य (एक) बन जायेंगे और इस तरह से सर्वपदार्थ सामान्य बन जायेंगे । (क्योंकि सभी पदार्थो में समानधर्म प्रमेयत्व है ही।) कहने का मतलब यह है कि, यदि कृतकत्वेन शब्द और घट को सामान्य मानोंगे और दोनो को अनित्य मानोंगे तो प्रमेयत्वेन सभी पदार्थ सामान्य होने से सभी पदार्थो को अनित्य मानने की आपत्ति आयेगी। (१९) (क)उपपत्तिसमा जाति : उपपत्ति से खंडन करना, उसे उपपत्तिसमा जाति कहा जाता है। जैसे कि, कृतकत्व की उपपत्ति से शब्द का अनित्यत्व है, तो अमूर्तत्व की उपपत्ति से शब्द का नित्यत्व क्यों नहीं होता? अर्थात् होता है। इस अनुसार दो पक्ष की उपपत्ति से आखिर में कोई निश्चय (निर्णय) नहीं होता। इस प्रकार उद्भावन के प्रकार की भिन्नता के योग से उपपत्तिसमा जाति बनती है। (२०) (ड)उपलब्धिसमा जाति : उपलब्धि के द्वारा खंडन करना, उसे उपलब्धिसमा जाति कहा जाता है। (अ) अर्थापत्त्या प्रत्यवस्थानम् अर्थापत्तिसमा जातिर्भवति ।। न्यायक० पृ १९।। (व) अविशेषापादनेन प्रत्यवस्थानमविशेषसमाजातिर्भवति ।। न्यायक० पृ- १९ ।। (क) उपपत्त्या प्रत्यवस्थानमुपपत्तिसमा जातिर्भवति ।। न्यायक० पृ. १९ ।। (ड) उपलब्ध्या प्रत्यवस्थानमुपलब्धिसमा जातिर्भवति ।। न्यायक० पृ० २० ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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