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षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, श्लोक - १४, १५, १६, नैयायिक दर्शन
कौन से परमाणुओ के समूह से बनता है । इत्यादि सर्वपदार्थो के उपादान कारण को जानते होने से समग्रता को जानते है और यदि ईश्वर को सर्वज्ञ नहीं मानोंगे तो) सर्वज्ञत्व के अभाव में निर्माण करने के लिए इच्छित पदार्थ के लिए उपयोगी ऐसे जगत के प्रवाह में बहते हुए अलग-अलग परमाणुओ के कणो को इकट्ठा करके अच्छी तरह से पदार्थ प्रायोग्य सामग्री इकट्ठा करने की क्षमता नहीं होती है और इसलिए जिस अनुसार (पदार्थ बनना चाहिए) उस अनुसार नहीं बनने से पदार्थों का निर्माण दुर्घट हो जायेगा। (सर्वज्ञ होगा, तो ही कौन से पदार्थ के लिए कौन कौन से परमाणु उपयोगी है, वह जान सकेगा और उस परमाणुओ को इकठ्ठा करके इच्छित पदार्थ बना सकेगा ।)
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तथा उनके भक्तो द्वारा कहा जाता है कि अप्रतिघ (अव्याहत - सर्वव्यापी) ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्य और धर्म ये चारो जगत्पति को एक साथ सिद्ध है | ॥१॥ आत्मा के सुख-दुःख को जानने में अन्य अज्ञ जीव असमर्थ है। ईश्वर से प्रेरित जीव ही स्वर्ग में या नर्क में जाता है | ||२||
अथवा “नित्यैकसर्वज्ञ” इस अनुसार एक ही विशेषण की व्याख्या करनी चाहिए ।
“नित्यः = सदा एक अद्वितीयः सर्वज्ञो - नित्यैकसर्वज्ञः " अर्थात् सदा एक सर्वज्ञ है । वह (ईश्वर ऐसा अन्वय करना)
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इस (विशेषण) के द्वारा अनादिकाल से सर्वज्ञ एक ईश्वर है और उस ईश्वर को छोडकर अन्य कोई भी सर्वज्ञ कभी भी नहीं होते है । (ऐसा सूचित होता है ।) क्योंकि ईश्वर से अन्य योगीओ का ज्ञान दूसरे सब अतीन्द्रिय पदार्थो को जानता होने पर भी अपने आत्मा को नहीं जानता। इसलिये वे योगी किस तरह से सर्वज्ञ हो सकते है ? (इससे सिद्ध होता है कि ईश्वर को छोडकर दूसरा कोई सर्वज्ञ नहीं है ।)
तथा नित्यबुद्धि का आश्रय ईश्वर है । अर्थात् नित्य ज्ञान का स्थान ईश्वर है । (यदि ईश्वर को क्षणिक बुद्धिवाले मानोंगे तो) क्षणिकबुद्धिवाले को कार्य में दूसरो की अपेक्षा होने से मुख्यकर्तृत्व का अभाव होगा । इसलिए अनीश्वरत्व की आपत्ति आयेगी। नैयायिक मत में नित्य, एक, सर्वज्ञ, नित्यज्ञान के आश्रय ऐसे विशेषण से विशिष्ट शिव महेश्वर देव है | ॥१३॥
अथ तन्मते तत्त्वानि विवरिषुः प्रथमं तेषां संख्यां नामानि च समाख्याति । - अब नैयायिक मत में तत्त्वो का विवरण (विस्तृत वर्णन) करने की इच्छावाले ग्रंथकार श्री इन तत्त्वो की संख्या और तत्त्वो के नाम कहते है ।
(मूल श्लोक.)
तत्त्वानि B-49 षोडशामुत्र प्रमाणादीनि तद्यथा । प्रमाणं च प्रमेयं च संशयश्च प्रयोजनम् ||१४|| दृष्टान्तोऽप्यथ सिद्धान्तोऽवयवास्तर्कनिर्णयौ । वादो जल्पो वितण्डा च हेत्वाभासा छलानि च । । १५ ।। जातयो निग्रहस्थानान्येषामेवं प्ररूपणा । B-50 अर्थोपलब्धिहेतुः स्यात्प्रमाणं तच्चतुर्विधम् ।।१६।।
श्लोकार्थ : इस नैयायिक मत में प्रमाणादि १६ तत्त्व है । वे इस अनुसार है । (१) प्रमाण, (२) प्रमेय, (B-49-50 ) - तु० पा० प्र० प० ।
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