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बौद्धदर्शन का विशेषार्थ
नहीं होगा। परमाणु में स्पर्श मानना उचित नहीं है। परमाणुओ के बीच कोई अंतर नहीं है। इसलिए वह
अंतरहीन पदार्थ है। (५) विनाश का कोई हेतु नहीं है। प्रत्येक वस्तु स्वभाव से ही विनाश के धर्मवाली है। वस्तु अनित्य नहीं है। परन्तु
क्षणिक है। उत्पाद का अर्थ है - अभूत्वा भावः (अर्थात् सत्ता धारण न करने की अनन्तर अन्तरस्थिति) पुद्गल (आत्मा) तथा आकाश सत्ताहीन पदार्थ है । वस्तुतः सत्य नहीं है। क्रिया-वस्तु तथा क्रियाकाल में किंचित् मात्र भी अंतर नहीं है। वस्त असत्त्व से उत्पन्न होती है। एक क्षण तक अवस्थान को धारण करती है और
बाद में लीन हो जाती है। तो भूत तथा भविष्य की सत्ता कैसे मानेंगें? (६) वैभाषिक रुप के (१) वर्ण और (२) संस्थान, इस तरह दो प्रकार मानते है। परन्तु सौत्रान्तिक 'रुप' से 'वर्ण'
ही अर्थ लेते है। संस्थान को रुप में नहीं लेते है। प्रत्येक वस्तु दुःख उत्पन्न करनेवाली है। सुख भी दुःख उत्पन्न करता है। इसीलिए सौत्रान्तिक मतवाले पदार्थो को दुःखमय मानते है। सौत्रान्तिक मत में अतीत (भूत) तथा अनागत (भविष्य) दोनो शून्य है । (तथा सौत्रान्तिकमतेऽतीतानागतं शून्यमन्यदशून्यम् ।) वर्तमानकाल ही सत्य है । (वैभाषिको ने भूत, वर्तमान और भविष्य तीनो काल का
अस्तित्व माना है।) (९) निर्वाण के विषय में सौत्रान्तिक मत के आचार्य (श्रीलब्ध) का एक विशिष्टमत है । उनका कहना है कि
प्रतिसंख्यानिरोध तथा अप्रतिसंख्यानिरोध में कोई प्रकार का अंतर नहीं है।
प्रतिसंख्यानिरोध का अर्थ है - प्रज्ञानिबन्धन भाविक्लेशानुत्पत्ति अर्थात् प्रज्ञा के कारण भविष्य में उत्पन्न होनेवाले समस्त क्लेशो का न होना । अप्रतिसंख्यानिरोध का अर्थ है -- क्लेशनिवृत्तिमूलक दुःखानुत्पत्ति अर्थात् क्लेशो की निवृत्ति के उपर ही दुःख अर्थात् संसार की अनुत्पत्ति अवलंबित है । इसलिये क्लेश का उत्पन्न न
होना, वह संसार की उत्पत्ति न होने का कारण है। ★ सौत्रान्तिकमतानुसार धर्मों का वर्गीकरण : सौत्रान्तिक ४३ धर्मो को मानते है।
प्रमाण दो प्रकार के है। (१) प्रत्यक्ष, (२) अनुमान ।
उसके विषय चार प्रकार के है । (१) रुप, (२) अरुप, (३) निर्वाण, (४) व्यवहार । (१) रुप दो प्रकार के है : (१) उपादान और (२) उपादाय । वह प्रत्येक चार प्रकार के है। उपादान के अन्तर्गत पृथ्वी,
जल, तेज और वायु की गणना होती है। और उपादाय में रुक्षता आकर्षण, गति तथा उष्णता, ये चार धर्मो की
गणना होती है । इस प्रकार रुप के आठ प्रकार है । (२) अरुप दो प्रकार के है : (१) चित्त और (२) कर्म (३) निर्वाण दो प्रकार के है : (१) सोपधि और (२) निरुपधि (४) व्यवहार दो प्रकार के है : (१) सत्य और (२) असत्य
४३ धर्मो का वर्गीकरण : (१) रुप = ८ (४ उपादान + ४ उपादाय), (२) वेदना = ३ (सुख, दुःख, न सुख - न दुःख (उदासीनता)), (३)
संज्ञा= ६ (पांच इन्द्रिय + १ चित्त) (४) विज्ञान = ६ (चक्षु आदि पांच और मन, यह इन्द्रियो का विज्ञान ।) (५) संस्कार = २० (१० कुशल + १० अकुशल)
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