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________________ षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, श्लोक - १२, बोद्धदर्शन परन्तु आत्मा नहीं है। वही स्कन्ध परलोक में जाते है। उनका वह (स्पष्ट) सिद्धांत है कि, हे भिक्षुओ ! ये पांचो वस्तुएं संज्ञामात्र है, प्रतिज्ञामात्र है, संवृत्तिमात्र है और व्यवहारमात्र है । वे पांच वस्तुएं कौन सी है ? (१) अतीतकाल, (२) अनागतकाल (३) सहेतुक विनाश, (४) आकाश, (५) पुद्गल ८४ यहाँ पुद्गल शब्द से नैयायिक आदि परपरिकल्पित नित्यत्व - व्यापकत्व आदि धर्मवाला आत्मा अर्थ का अभिप्राय है । अर्थात् नैयायिक आदि द्वारा माना गया नित्य-व्यापक धर्मवाला आत्मा है। वही बौद्धोके माना हुआ पुद्गल है। बाह्यार्थ हंमेशा अप्रत्यक्ष ही रहता है । वह बाह्यार्थ की सत्ता का ज्ञान तो ज्ञान में प्रतिबिंबित आकार से ही किया जाता है । अर्थात् ज्ञान में प्रतिबिंबित होता आकार अन्यथा अनुपपन्न रहता है। इसलिये बाह्यार्थ की सत्ता का अनुमान किया जाता है । साकारबोध ही प्रमाण है । तथा सर्व संस्कार क्षणिक है । 'स्वलक्षण' ही वास्तविक अर्थ है । प्रतिक्षण विनाश होता रुप, रस, गंध तथा स्पर्श के परमाणु तथा ज्ञान ही तत्त्व है। शब्द का अर्थ (वाच्य) विधिरुप नहीं होता, परन्तु अन्यथापोहरुप होता है। ज्ञान पदार्थ से उत्पन्न होके तथा पदार्थ के आकार को ग्रहण करके अर्थ का परिच्छेदक बनता है। नैरात्म्यभावना से ज्ञान के संतान का सर्वथा उच्छेद होता है और वही मोक्ष है । योगाचारमतं त्विदम्-B-39विज्ञानमात्रमिदं भुवनम् नास्ति बाह्योऽर्थः, ज्ञानाद्वैतस्यैव तात्त्विकत्वात् । अनेके ज्ञानसंतानाः । साकारो बोधः प्रमाणम् । वासनापरिपाकतो नीलपीतादिप्रतिभासाः । B-4°आलयविज्ञानं हि सर्ववासनाधारभूतम् । आलयविज्ञानविशुद्धिरेवापवर्ग इति । माध्यमिकदर्शने B-41 तु-शून्यमिदं, B-42 स्वप्नोपमः प्रमाणप्रमेययोः प्रविभागः । “मुक्तिस्तु शून्यतादृष्टेः, तदर्थं शेषभावना” [प्र.वा० १/२५६ ] इति । केचित्तु माध्यमिकाः स्वस्थं ज्ञानमाहुः B-43तदुक्तम्-“अर्थो ज्ञानसमन्वितो मतिमता वैभाषिकेणोच्यते, प्रत्यक्षो नहि बाह्यवस्तुविस्तरः (विसरः) सौत्रान्तिकैराश्रितः । यौगाचारमतानुगैरभिमता साकारबुद्धिः परा, मन्यन्ते बत मध्यमाः कृतधियः स्वस्थां परां संविदम् ।। १ ।।” [] इति । ज्ञानपारमिताद्या B-44 दशग्रन्थाः । B-45 तर्कभाषा हेतुबिन्दुस्तट्टीकार्चटतर्कनाम्नी प्रमाणवार्तिकं तत्त्वसंग्रहो न्यायबिन्दुः कमलशील न्यायप्रवेशकश्चेत्यादयस्तद्ग्रन्था इति ।। एवं बौद्धमतमभिधाय तदेव संचिक्षिप्सुरुत्तरं चाभिसंधित्सुराह ( मू. लो. ) बौद्धराद्धान्तवाच्यस्य संक्षेपोऽयं निवेदितः ।।१२- पूर्वार्ध ।। बौद्धराद्धन्तस्य सौगतसिद्धान्तस्य यद्वाच्यं तस्य संक्षेपोऽयमनन्तरोदितो निवेदितोऽभिहितः । इति श्रीतपागणनभोंगणदिनमणिश्रीदेवसुन्दरसूरिक्रमकमलोपजीविशिष्यश्रीगुणरत्नसूरिविरचितायां तर्करहस्यदीपिकाभिधानायां षड्दर्शनसमुच्चयटीकायां बौद्धमतप्रकटनो नाम प्रथमोऽधिकारः । । (अ) स्वच्छं प० १, २, भ० १, २ । (B-39-40-41-42-43-44-45 ) - तु० पा० प्र० प० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004073
Book TitleShaddarshan Samucchaya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashak
Publication Year2012
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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