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षड्दर्शन समुञ्चय भाग - १, श्लोक - ११, बोद्धदर्शन
श्लोकार्थ : (१) पक्षधर्मत्व, (२) सपक्ष में विद्यमानता (= सपक्षसत्त्व), (३) विपक्ष में अविद्यमानता (= विपक्षासत्त्व) इस अनुसार तीन रुप हेतु के जानना ।
व्याख्या-साध्यधर्मविशिष्टो धर्मी पक्षः, तस्य धर्मः पक्षधर्मः, तद्भावः पक्षधर्मत्वम् । अपक्षशब्देन चात्र केवलो धर्म्यवाभिधीयतेऽवयवे समुदायोपचारात् । यदि पुनर्मुख्य एव साध्यधर्मविशिष्टो धर्मी पक्षो गृह्येत, तदानुमानं व्यर्थमेव स्यात्, साध्यस्यापि धर्मिवत्सिद्धत्वात् । ततश्च पक्षधर्मत्वं पक्षे धर्मिणि हेतोः सद्भावः । स च प्रत्यक्षतोऽनुमानतो वा प्रतीयते । तत्र प्रत्यक्षतः कस्मिंश्चित्प्रदेशे धूमस्य दर्शनम् । अनुमानतश्च शब्दे कृतकत्वस्य निश्चयः । इदमेकं रूपम् । तथा समानः पक्षः सपक्षःB-25, तस्मिन्सपक्षे दृष्टान्ते विद्यमानता हेतोरस्तित्वं सामान्येन भाव इत्यर्थः । इदं द्वितीयं रूपं, अस्य च 'अन्वयः' इति द्वितीयमभिधानम् । तथा विरुद्धः पक्षो विपक्षः साध्यसाधनरहितः, तस्मिन्विपक्षे नास्तिता हेतोरेकान्तेनासत्त्वम् । इदं तृतीयं रूपम्, अस्य च 'व्यतिरेक' इति द्वितीयमभिधानम्-26 । बएतानि पक्षधर्मत्वसपक्षसत्त्वविपक्षासत्त्वलक्षणानि हेतोर्लिङ्गस्य त्रीणि रूपाणि । एवंशब्दस्य इतिशब्दार्थत्वादिति विभाव्यतां हृदयेन सम्यगवगम्यताम् ।
टीकाका भावानुवाद : साध्य धर्म से युक्त धर्मी को पक्ष कहा जाता है। (अर्थात् हेतु के पक्ष में रहना वह पक्षधर्मत्व।) पक्ष शब्द यद्यपि साध्यधर्म के युक्त धर्मी में रुढ है, फिर भी यहाँ पक्ष शब्द से केवल धर्मी का ही ग्रहण करना । यहाँ अवयवभूत शुद्धधर्मी में समुदायवाची पक्ष का उपचार करके पक्ष शब्द से शुद्धधर्म का कथन किया है।
यदि साध्य धर्म से विशिष्ट धर्मी ही मुख्यरुप से पक्ष शब्द द्वारा विवक्षित किया जाये तो अनुमान ही व्यर्थ हो जायेगा । क्योंकि, (पक्ष के ग्रहण समय) धर्मि की तरह धर्म साध्य भी सिद्ध ही होता है। इसलिये पक्षधर्मत्व का अर्थ है, पक्ष में अर्थात् धर्मी में हेतु का सद्भाव होना। हेतु की पक्षधर्मता का ज्ञान प्रत्यक्ष से या अनुमान से होता है। उसमें प्रत्यक्ष से कोई प्रदेश में (जहां अग्नि की सिद्धि करना इष्ट है वहां) धूम का दर्शन करने से पक्षधर्मता का ग्रहण हो जाता है। (अनित्यत्व को सिद्ध करने के लिए प्रयोजित किया गया) कृतकत्व हेतु का शब्दरुप पक्ष में रहना, यह अनुमान द्वारा प्रतीत होता है, इस प्रकार पक्षधर्मत्व हेतु का एक रुप है।
समान पक्ष को सपक्ष कहा जाता है। वह सपक्ष में अर्थात् दृष्टांत में हेतु की विद्यमानता = अस्तित्व (उसे सामान्य से) सपक्षसत्त्व कहा जाता है। (पर्वतो वहिमान धूमात् । स्थल में पर्वतरुप पक्ष में हेतु धूम का (अ) “पक्षो धर्मी, अवयवे समुदायोपचारात्" - (हेतु बि० - पृ. ५२) (ब) "तत्र पक्षधर्मस्य साध्यधर्मिणि प्रत्यक्षतोऽनमानतो वा प्रसिद्धिः । यथा प्रदेशे धूमस्य शब्देवा कृतकत्वस्य" (हेतु बि० पृ-५३)
(B-25-26) - तु० पा० प्र० प० ।
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