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अष्टक-१८
माँस-भक्षण का दोष ठहरेगा—जिसका अर्थ यह हुआ कि माँस-भक्षण एक निर्दोष काम नहीं ही है।
(टिप्पणी) प्रस्तुत कारिका में आचार्य हरिभद्र प्रश्न के एक तीसरे पहलू की ओर पाठक का ध्यान आकृष्ट करते हैं । यदि प्रस्तुतवादी बचाव दे कि शास्त्र माँस-भक्षण का सर्वथा निषेध भी करता है लेकिन एक परिव्राजक के लिए, तो उत्तर में आचार्य हरिभद्र एक बात तो यही कहेंगे कि तब भी उक्त शास्त्र को 'न मांसभक्षणे दोषः' जैसा दो-टूक विधान नहीं करना चाहिए। लेकिन अब वे एक नई बात भी कह रहे हैं और वह इसलिए कि प्रस्तुतवादी बचाव दे सकता है कि पारिव्राज्य ग्रहण न करने वाले व्यक्ति के लिए तो माँस-भक्षण में कोई दोष सर्वथा ही नहीं; आचार्य हरिभद्र का उत्तर है कि पारिव्राज्य ग्रहण न करने वाले व्यक्ति का सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यही है कि वह पारिवाज्यावस्था के लाभों से वंचित रह जाता है । वस्तुतः आचार्य हरिभद्र का उत्तर उसी वादी को चुप कर सकेगा जो पारिवाज्यावस्था के लाभों को संसार का सर्वोच्च लाभ मानता है; लेकिन मोक्षवादी सभी विचारक यह मानते ही हैं कि मनुष्य का चरम पुरुषार्थ मोक्ष है और मोक्ष का अनिवार्य साधन पारिव्राज्य ।
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