SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५८ अष्टक-१७ इस आधार पर कि वे दोनों (समान रूप से) स्त्रियाँ हैं । तस्माच्छास्त्रं च लोकं च समाश्रित्य वदेद् बुधः । सर्वत्रैवं बुधत्वं स्यादन्यथोन्मत्ततुल्यता ॥७॥ अतः एक बुद्धिमान् व्यक्ति को चाहिए कि वह सभी प्रश्नों पर शास्त्र तथा लोक व्यवहार के आधार पर बात करे; इसी में उसकी बुद्धिमत्ता है, वरना उसकी तुलना पागलों से होगी । शास्त्रे चाप्तेन वोऽप्येतन्निषिद्धं यत्नतो ननु । लंकावतारसूत्रादौ ततोऽनेन न किंचन ॥८॥ फिर स्वयं प्रस्तुतवादी द्वारा आप्त (= प्रमाणिक) माने गए 'लंकावतारसूत्र' आदि शास्त्र में इसका (अर्थात् माँस-भक्षण का) निषेध प्रयत्नपूर्वक किया गया है, इसलिए इससे (अर्थात् मांसभक्षण से) उसका कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता । (टिप्पणी) इस संबंध में टीकाकार ने लंकावतारसूत्र का निम्नलिखित वाक्य उद्धृत किया है : 'न प्राण्यंगसमुत्थं मोहादपि शंखचूर्णमश्नीयात्' (अर्थात् एक प्राणी के शरीर के भाग भूत शंख के चूर्ण को भूल से भी नहीं खाना चाहिए) । इस कारिका से यह भी जाना जा सकता है कि प्रस्तुतवादी कोई बौद्ध होना चाहिए । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004072
Book TitleAstaka Prakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages142
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy