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अष्टक-१७
इस आधार पर कि वे दोनों (समान रूप से) स्त्रियाँ हैं ।
तस्माच्छास्त्रं च लोकं च समाश्रित्य वदेद् बुधः ।
सर्वत्रैवं बुधत्वं स्यादन्यथोन्मत्ततुल्यता ॥७॥
अतः एक बुद्धिमान् व्यक्ति को चाहिए कि वह सभी प्रश्नों पर शास्त्र तथा लोक व्यवहार के आधार पर बात करे; इसी में उसकी बुद्धिमत्ता है, वरना उसकी तुलना पागलों से होगी ।
शास्त्रे चाप्तेन वोऽप्येतन्निषिद्धं यत्नतो ननु ।
लंकावतारसूत्रादौ ततोऽनेन न किंचन ॥८॥ फिर स्वयं प्रस्तुतवादी द्वारा आप्त (= प्रमाणिक) माने गए 'लंकावतारसूत्र' आदि शास्त्र में इसका (अर्थात् माँस-भक्षण का) निषेध प्रयत्नपूर्वक किया गया है, इसलिए इससे (अर्थात् मांसभक्षण से) उसका कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता ।
(टिप्पणी) इस संबंध में टीकाकार ने लंकावतारसूत्र का निम्नलिखित वाक्य उद्धृत किया है :
'न प्राण्यंगसमुत्थं मोहादपि शंखचूर्णमश्नीयात्'
(अर्थात् एक प्राणी के शरीर के भाग भूत शंख के चूर्ण को भूल से भी नहीं खाना चाहिए) । इस कारिका से यह भी जाना जा सकता है कि प्रस्तुतवादी कोई बौद्ध होना चाहिए ।
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