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अष्टक-१
आचार-मार्गों का (अथवा सभी चिंतन-मार्गों का) प्रणेता है वही व्यक्ति महादेव कहलाता है।
___(टिप्पणी) यहाँ तीसरी कारिका में आए विशेषणों को समझने के लिए जैन-परंपरा की दो एक मान्यताएँ जान लेना आवश्यक है । 'वीतराग' इस शब्द का अर्थ करना चाहिए 'राग, द्वेष, मोह से सर्वथा मुक्त व्यक्ति' और जैनपरंपरा की मान्यतानुसार ऐसा व्यक्ति सर्वज्ञ होता है । दूसरे, यह परंपरा मानती है कि एक व्यक्ति के पुनर्जन्म के कारणभूत 'कर्म' आठ प्रकार के होते हैं । जिनके नाम हैं—ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अन्तराय, नाम, गोत्र, आयु तथा वेदनीय और जिन में से पहले चार का सर्वथा क्षय एक संसारस्थ 'वीतराग' व्यक्ति कर चुका होता है जबकि शेष चार का क्षय होते ही वह व्यक्ति शरीरत्याग कर मोक्ष प्राप्त कर लेता है । तीसरे, इस परंपरा की मान्यतानुसार मोक्षावस्था एक अनूठे प्रकार के सदा-स्थायी सुख की अवस्था है । अतः प्रस्तुत तीसरी कारिका में आया 'शाश्वतसुखेश्वरः' यह विशेषण एक मोक्ष प्राप्त व्यक्ति पर ही लागू होता है लेकिन 'क्लिष्टकर्मकलातीतः' तथा 'सर्वथा निष्कलः' इन दो विशेषणों के संबंध में समझना है कि उपरोक्त पहला अर्थ स्वीकार करने पर इनमें से पहला एक संसारस्थ 'वीतराग' व्यक्ति पर लागू होता है तथा दूसरा एक मोक्ष-प्राप्त व्यक्ति पर जबकि उपरोक्त दूसरा अर्थ स्वीकार करने पर ये दोनों एक मोक्ष प्राप्त व्यक्ति पर लागू होते हैं।
एवं सद्वृत्तयुक्तेन येन शास्त्रमुदाहृतम् ।
शिववर्त्म परं ज्योतिस्त्रिकोटीदोषवर्जितम् ॥५॥
उक्त प्रकार से सदाचरण-संपन्न जिस व्यक्ति ने ऐसे शास्त्र का उपदेश किया है जो मोक्ष के मार्ग जैसा है, जो परम प्रकाश जैसा है, जो तीनों प्रकारों से (अर्थात् आदि, मध्य, अन्त में अथवा कसौटी पर कसा जाने पर, काटा जाने पर, तपाया जाने पर) दोष-रहित ठहरता है (वही व्यक्ति महादेव कहलाता है)।
(टिप्पणी) कहने की आवश्यकता नहीं कि शास्त्रोपदेश करना एक संसारस्थ 'वीतराग' व्यक्ति के लिए ही संभव है—एक मोक्ष-प्राप्त व्यक्ति के लिए नहीं । अतएव प्रस्तुत कारिका में इस व्यक्ति को 'सद्वृत्तयुक्त' यह विशेषण दिया गया है, क्योंकि मोक्षावस्था में सद्-असद् वर्त्तन (= आचरण) का प्रश्न ही नहीं उठता । 'कसौटी पर कसना, काटना, तपाना' ये वे तीन परीक्षाएँ हैं जिनकी सहायता से धातु-विशेषज्ञ एक धातु के खरे-खोटेपन की
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