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मान्यता थी कि अपने शुभ प्रकार के क्रिया-कलापों (तथा उनके द्वारा अजित शुभ 'कर्मों') के फलस्वरूप एक व्यक्ति शुभ प्रकार का पुनर्जन्म पाता है जबकि अपने अशुभ प्रकार के क्रिया-कलापों (तथा उनके द्वारा अर्जित अशुभ 'कर्मों') के फलस्वरूप वह अशुभ प्रकार का पुनर्जन्म पाता है। ऐसी दशा में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक था कि तब फिर वे क्रिया कलाप कौन से होंगे जिनके फलस्वरूप एक व्यक्ति को पुनर्जन्म-चक्र से मुक्ति अर्थात् मोक्ष मिल सकेगी। इस प्रश्न के उत्तर में सामान्यतः यही कहा जा सकता था और वस्तुतः यही कहा भी गया—कि शुभ कोटि में परिगणित क्रिया-कलापों का ही संपादन एक विशिष्ट समझ के साथ करने के फलस्वरूप एक व्यक्ति को मोक्ष मिल सकेगी। उदाहरण के लिए, गीता में कहा गया कि अपने वर्णाश्रम-धर्म का पालन निष्काम भाव से करने के फलस्वरूप एक व्यक्ति को मोक्ष मिलेगी, और तत्त्वतः यही बात आचार्य हरिभद्र ने भी कही, (एक जैन होने के नाते आचार्य हरिभद्र वर्णाश्रमव्यस्था में विश्वास नहीं रखते थे और इसलिए प्रस्तुत विधान में 'अपने वर्णाश्रम-धर्म का पालन' के स्थान पर वे कहेंगे 'अपने अवस्थोचित धर्म का पालन'), समस्या के इस समाधान की अपनी कठिनाइयाँ थीं और विभिन्न परंपराओं द्वारा इन कठिनाइयों का सामना विभिन्न प्रकार से किया गया । प्रस्तुत ग्रंथ द्वारा जाना जा सकेगा कि आचार्य हरिभद्र जैसा एक आचारनिष्ठ एवं उदारचेता जैन विचारक इन कठिनाइयों से कैसे जूझता है । आचार्य हरिभद्र की कठिनाई का एक उदाहरण ले लिया जाए । अपने इस ग्रंथ में उन्होंने एकाधिक स्थान पर दान की प्रशंसा एक मोक्ष-साधन के रूप में की है और वहाँ हमें यही समझना है कि निष्काम भाव से दिया गया दान ही मोक्ष का साधन सिद्ध होता है, लेकिन इसी ग्रंथ में एक स्वतंत्र अष्टक (नं. ७) की रचना यही सिद्ध करने के लिए की गई है कि एक साधु को एकान्त में भोजन इसलिए करना चाहिए कि वह यदि उस समय उससे भोजन माँगने आए हुए दरिद्रों को भोजन नहीं देगा तो अशुभ 'कर्म' का अर्जन करेगा और यदि देगा तो शुभ 'कर्म' का (जो दोनों ही परिस्थितियाँ उसके पुनर्जन्म का कारण सिद्ध होंगी) । समझ में नहीं आता कि यदि यह साधु इन दरिद्रों को निष्काम भाव से भोजन दे डालेगा तो उसका क्या बिगड़ जाएगा । जो भी हो, किस प्रकार के सत्-आचरण को आचार्य हरिभद्र केवल शुभ पुनर्जन्म का कारण मानते हैं और किस प्रकार के सत्-आचरण को मोक्ष का इस प्रश्न का उत्तर आचार्य हरिभद्र के पाठकों को अपनी बुद्धि का प्रयोग करके पाना होगा।
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