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सामायिक का स्वरूप
सामायिकं च मोक्षांगं परं सर्वज्ञभाषितम् । वासीचन्दनकल्पानामुक्तमेतन्महात्मनाम् ॥१॥
और सामायिक अर्थात् राग-द्वेष से वर्जित (अतः समता-मूलक) आचरण को, जिसका स्वरूप - निरूपण सर्वज्ञ व्यक्तियों ने किया है, महात्माओं की मोक्ष का प्रधान कारण बतलाया गया है, उन महात्माओं की जो 'वासीचन्दनन्याय' का पालन करने वाले हैं (अर्थात् जो कुल्हाड़ी तथा चंदन दोनों को समान भाव से ग्रहण करते हैं अथवा जो उस चंदन की भाँति हैं जो कुल्हाड़ी खाने पर भी सुगंध फैलाता है) ।
(टिप्पणी) 'सामायिक जिसका स्वरूप - निरूपण सर्वज्ञ व्यक्तियों ने किया है' इस वाक्यांश का फलितार्थ हुआ 'वह आदर्श आचरण - मार्ग जिसका स्वरूप-निरूपण जैन शास्त्रीय ग्रंथो में हुआ है' । 'सामायिक' यह शब्द जैन परंपरा में पारिभाषिक है और उसका मोटा अर्थ सदाचरण होना चाहिए ।
निरवद्यमिदं ज्ञेयमेकान्तेनैव तत्त्वतः । कुशलाशयरूपत्वात् सर्वयोगविशुद्धितः ॥२॥
इस सामायिक को सर्वथा निर्दोष तत्त्वतः समझना चाहिए और वह इसलिए कि वह शुभ मनोभावना रूप है तथा उससे सम्पन्न व्यक्ति के सभी (अर्थात् मानसिक, वाचिक, शारीरिक ) क्रिया-कलाप विशेष शुद्ध हुआ करते हैं ।
यत् पुनः कुशलं चित्तं लोकदृष्ट्या व्यवस्थितम् । तत्तथौदार्ययोगेऽपि चिन्त्यमानं न तादृशम् ॥३॥
और जिसे लोक-सामान्य की दृष्टि में शुभ मनोभावना माना जाता है वह उन उन उदारताओं से सम्पन्न भले ही हो लेकिन विचार करने पर सिद्ध होता कि वह सामायिक के जोड़ की नहीं ।
(टिप्पणी) प्रस्तुत कारिका से थोड़ा और स्पष्ट हो जाता है कि
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