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________________ सं० १६४३-१६४६ के मध्य में बीकानेर में मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र बच्छावत ने इन्हीं से (जयसोम गणि से) ग्यारह अंग१२ (श्वेताम्बर समाज के प्रमुख आगम ग्रन्थ) श्रवण किये थे। सं० १६४८ फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को आचार्य जिनचन्द्रसूरि सम्राट अकबर के आमन्त्रण पर लाहोर आये, उस समय ये भी (जयसोमगणि) भी साथ में थे। अकबर के पुत्र शाहजादा सलीम (जहांगीर) के मूलनक्षत्र के प्रथम चरण में कन्या उत्पन्न हुई जो ज्योतिषियों के मतानुसार अनिष्टकारक थी। इसलिये अकबर ने अनुष्ठान करवाये। अकबर की सदिच्छा से जैन-विधि से भी अष्टोत्तरी स्नात्र करवाया गया। इसका सारा व्यय मंत्री कर्मचन्द्र ने वहन किया और विधि-विधान जयसोम गणि ने करवाया।१३ सं० १६४९ फाल्गुन शुक्ला द्वितीया को युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि ने लाहोर में अकबर की सान्निध्यता में इनको उपाध्याय पद प्रदान किया। अकबर की सभा में इन्होंने किसी विद्वान् को शास्त्रार्थ में पराजित भी किया था। श्रीगुणविनय रचित अंजनासुंदरी चौपाई रचना सं० १६६२ में 'श्रीजयसोम महाउवझाय' महोपाध्याय पद का प्रयोग होने से स्पष्ट है कि सं० १६६२ से पूर्व ही आप गच्छ में वयोवृद्ध एवं गीतार्थ होने से महोपाध्याय पद से अभिहित होने लग गये थे। सं० १६७५ वैशाख शुक्ला त्रयोदशी को शत्रुञ्जय तीर्थ की प्रतिष्ठा के अवसर पर ये भी श्रीजिनराजसूरि के साथ मौजूद थे१५ । सं० १६७५ के पश्चात् इनके सम्बन्ध में कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता है अत: संभव है १६८० के लगभग आपका स्वर्गवास हो गया हो। __ आचार्य जिनचन्द्रसूरि रचित पौषधविधि प्रकरण टीका का इन्होंने पुनः अवलोकन, संशोधन, परिमार्जन कर संशोधित प्रति लिखी थी। अन्तिम द्विपदी पद्य की व्याख्या भी इन्होंने ही की थी। इस प्रशस्ति में स्वयं के लिये उपाध्याय ६ विशेषण का प्रयोग किया है अत: यह संशोधन १६४९ के पश्चात् का ही निश्चित है। जयसोमजी जैन-सिद्धान्तों के दिग्गज एवं प्रौढ विद्वान् थे एवं इनका प्राकृत, संस्कृत और राजस्थानी भाषा पर भी पूर्ण अधिकार था। प्रश्नों के उत्तर देने में बड़े विवेकशील एवं तार्किक थे। तत्कालीन साहित्य को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय आगमों पर, गच्छ की सामाचारी आदि पर जो भी आक्षेप या प्रश्न उत्पन्न होते थे उनका खरतर गच्छ की ओर से प्रामाणिक प्रत्युत्तर देने का भार इन्हीं के स्कन्धों पर था। यही कारण है कि उस समय के रत्ननिधानोपाध्याय जैसे विद्वान् भी आप से सैद्धान्तिक विषयों में प्रश्नोत्तर किया करते थे। महोपाध्याय समयसुन्दर जी ने आपके लिये जो ‘सिद्धान्तचक्रचक्रवर्ती १८ विशेषण का प्रयोग किया है वह उपयुक्त ही प्रतीत होता जयसोम द्वारा निर्मित साहित्य (वर्तमान समय में प्राप्त) का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है१. कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकाव्य-यह एक ऐतिहासिक घटनाप्रधान चरित्र काव्य है। इसमें बीकानेर के महाराज कल्याणमल्ल और रायसिंह के मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र बच्छावत के पूर्वजों का, कर्मचन्द्र के सुकृत-कलापों तथा शौर्य का जीवन्तवर्णन है। इसकी रचना सं० १६५०, अकबर के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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