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चम्पू चतुर्थ उच्छ्वास पद्य ६ में आगत 'जगज्जैत्र' की व्याख्या
हे रम्भोरु ! त्वं दीर्घायुः - चिरञ्जीविनी सुखिनी च भव । किम्भूता त्वम्? कन्दर्पस्य जगज्जैत्रं- जगज्जयनशीलं शस्त्रं आयुधं तेन जगज्जैत्र- शस्त्रेण, अनेन - प्रत्यक्षेण रूपेणसौन्दर्येण आश्चर्यं करोतीत्येवंशीला आश्चर्यकारिणी । 'जगज्जैत्रशस्त्रेणाश्चर्यकारिणा' इति पाठे तु - हे रम्भोरु ! त्वं अनेन रूपेण सुखिनी दीर्घायुश्च भव । किम्भूतेन रूपेण ? आश्चर्यकारिणेति व्याख्येयम् ॥ ६॥
विनय गणि रचित यह विवृति / व्याख्या श्लोक परिमाण की दृष्टि से अत्यन्त विशाल होते हुए भी अति सरल, सुगम और सुबोध है। अध्ययनशील पाठकों के लिए यह अत्यन्त उपयोगी/ उपादेय है। राजगुरु कथाभट्ट श्री नंदकिशोर शर्मा ने भी दमयन्तीचम्पू की चण्डपाल कृत टीका का सम्पादन करते हुए इसका उपयोग किया है। यह विवृति अवश्य ही प्रकाशन योग्य है ।
मैंने सन् १९६५ में इसका सम्पादन कार्य प्रारम्भ किया था । मूल कृति के ३ प्राचीन प्रतियों से पाठान्तर, इस टीका की प्राचीन प्रति राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर और अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर ( सम्वत् १६५३ की लिखित एवं संशोधित) की प्रति से पाठान्तरों एवं परिशिष्टों के साथ पाण्डुलिपि तैयार की थी, किन्तु दुर्भाग्य है उसका प्रकाशन आज तक न हो सका। इस टीका की कुछ ही प्रतियाँ उपलब्ध है।
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दमयन्ती कथा चम्पू के वर्ण्य विषय एवं व्याख्याओं के सम्बन्ध में विश्लेषण करने के पश्चात् विवृतिकार महोपाध्याय गुणविनय का व्यक्तित्व एवं कृतित्व परिचय, शिष्य परम्परा और साहित्य सर्जना के सम्बन्ध में परिशीलन करना आवश्यक है, वह परिशीलन अगले अध्याय में प्रस्तुत है।
टिप्पणियाँ -
१.
२.
३.
४.
५.
दमयन्तीचम्पू १/१९
दमयन्तीचम्पू (काशी संस्कृत सीरीज) भूमिका पृ० ५
जर्नल बाम्बे ब्रांच रायल एशियाटिक सोसायटी, १८ भाग, पृष्ठ २४३, २५७, २६१
इण्डियन एण्टीक्वेरी भाग १२, पृ० २२४
एपिग्राफिया इण्डिका १, पृ० ३४१
६.
दमयन्तीचम्पू (नन्दकिशोर सं०) भूमिका पृ० ४
७.
एपिग्राफिया इण्डिका, भाग ३, पृ० ११२
८.
इण्डियन एण्टीक्वेरी भाग ४०, पृष्ठ २१६ दमयन्तीचम्पू १/१४
९.
१०. कैलासपति त्रिपाठी: दमयन्तीचम्पू भूमिका, पृ० १७ ११. कैलासपति त्रिपाठी: दमयन्तीचम्पू भूमिका, पृ० १७
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