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की सीढ़ी है। कवि ने यह भी लिखा है कि पयोष्णी नदी महावराह के पसीने से निकली है। इसकी तरंगें स्वर्ग की सीमा तक पहुँचने वाली सीढ़ियों के समान है।१९२
३०. मन्दाकिनी-नल के राज्याभिषेक के समय मन्दाकिनी का जल भी लाया गया था। यह गंगा का नाम है।
३१. वरदा-आधुनिक वर्धा नदी का प्राचीन नाम वरदा था। कुछ लोग इसे गंगा भोगवती मानते हैं। भगवतशरण उपाध्याय वरदा को वर्धा से भिन्न मानते हैं।९३ महाराष्ट्र इसके तट पर स्थित माना गया है।
३२. विदर्भा-महाराष्ट्र में बहने वाली यह दूसरी नदी थी जिसे दक्षिण की सरस्वती कहा गया है। यह गोदावरी की सहायक नदी खड्कपूर्णा है।
३३. गन्धमादन-इसे त्रिविक्रम ने स्वामी कार्तिकेय का अधिष्ठान माना है। कार्तिकेय द्वारा क्रौंचभेदन की ओर भी संकेत हैं ।१९४ यह कैलाश पर्वत के दक्षिण में था। महाभारत और वराहपुराण के अनुसार बदरिकाश्रम की स्थिति इसी पर्वत पर है।
३४. मलय पर्वत-मलय पर्वत मालाबार के पास है। यह चन्दन की उद्भव भूमि है। मलय पर्वत की ओर से आने वाली शीतल, मंद और सुगन्ध गुणयुक्त दक्षिण पवन (मलय-मारुत) का उल्लेख साहित्य में प्रभूत रूप से मिलता है।
३५. मेरु (काञ्चनादि)-काञ्चनाद्रि से गुणों में नल को विशेष बताया गया है। यह गढ़वाल का रुद्र-हिमाचल माना गया है। पद्मपुराण के अनुसार गंगा नदी इसी से निकलती है।
३६. विन्ध्याचल-आज भी यह इसी नाम से जाना जाता है। नल ने दमयंती स्वयंवर में जाते समय इसे पार किया था। विन्ध्य प्रान्त में भीलों के गांव बसे हुए थे। धव नामक वृक्ष अधिक थे। इस प्रदेश में हाथी विचरण किया करते थे।
३७. हिमवान्–त्रिविक्रम भट्ट ने महर्षि व्यास को हिमवान् के समान वन्दनीय माना है, जिन्होंने महाभारत की जैसे हिमवान् ने गौरी को जन्म दिया वैसे ही रचना की।
व्यासः क्षमाभृतां श्रेष्ठो बन्धः स हिमवानिव।
सृष्टा गौरीदृशी येन भवे विस्तारि भारता॥ ३८. श्रीशैल-विदर्श देश की प्रशस्ति श्रीशैलपर्वत के कारण मानी जाती है। उस पर भगवान शंकर निवास करते हैं इसलिए वह कैलाश पर्वत की कीर्ति को भी तिरस्कृत करता है। यह कावेरी तट के समीप स्थित कहा गया है।
ऊपर के वर्णन से स्पष्ट है कि कुछ स्थलों का कवि ने विस्तार से वर्णन किया है और कुछ का केवल नाम-संकेत मात्र दिया है। दक्षिण के स्थानों से कवि का प्रत्यक्ष परिचय था परन्तु उत्तर के कई नामों को उसने सुना मात्र था।
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