SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०. महाराष्ट्र-नल के राज्याभिषेक के समय गोदावरी का पुण्य जल भी लाया गया था। गोदावरी में महाराष्ट्र की रमणियाँ स्नान करती थीं।१८७ कवि ने महाराष्ट्र को वीर-पुरुषों से युक्त तथा वरदा और विदर्भा नदियों से सिंचित कहा है वीरपुरुषं तदेतद्वरदातटनामकं महाराष्ट्रम्। दक्षिणसरस्वती सा वहति विदर्भा नदी यत्र ॥१८८ २१. लंका-लंका की ओर दमयन्तीचम्पू में श्लेष प्रसंग में संकेत-मात्र है। यह सिंहल का ही नाम ज्ञात होता है। लंका में यातुधान रहते थे इस किंवदन्ती में कवि का विश्वास था। २२. बंग–स्वयंवर में बंग का शासक भी आया था। इसी प्रसंग में इस प्रदेश का नाम आया है। पद्मा और ब्रह्मपुत्र से सिंचित भूभाग ही बंग प्रदेश कहलाता था। २३. विदर्भ-दक्षिण देश में कवि ने विदर्भ की स्थिति मानी है। कुण्डिननगर इसकी राजधानी थी। इसका वर्णन कवि ने बड़ी ही आत्मीयता पूर्वक किया है। यह नर्मदा से दक्षिण में माना गया है। २४. विशेषक-नारी-सौंदर्य के वर्णन के प्रसंग में तिलक (विशेषक) के साथ श्लेष से विशेषक नामक स्थान भी संकेतित हैं। इस स्थान की स्थिति के विषय में कोई संकेत नहीं मिलता। २५. तापी-दमयन्तीचम्पू में इसे यमुना या कालिन्दी भी कहा गया है। यह कलिन्दगिरि से निकलने के कारण कालिन्दी कहलाती है। इसे भानुसुता भी कहा गया है ।१८९ २६. नर्मदा-नर्मदा को मेकलकन्या भी कहा गया है। कुण्डिननगर जाते समय नल ने इसे पार किया था। यह अमरकण्टक से निकल कर खम्भात की खाड़ी में गिरती है। नर्मदा के किनारे शंकर का स्मरण करते हुए नीति-सम्पन्न मुनि विचरण करते थे। उसके निकटवर्ती वनों में हाथी भी रहते थे। उसके तट की शोभा अत्यन्त रमणीय थी। २७. कावेरी-कावेरी दक्षिण की प्रसिद्ध नदी है। कुर्ग के ब्रह्मगिरि नामक पहाड़ में चन्द्रतीर्थ सोते से यह निकलती है। इसके तट पर कलम (धान) के खेत, सरस आम तथा कारस्कर नामक वृक्ष थे। २८. गोदावरी-गोदावरी ब्रह्मगिरि से निकलती है जो नासिक के पास है। त्रिविक्रम भट्ट ने गोदावरी तट को स्वर्ग-सम्पत्ति से स्पर्धा रखने वाला कहा है।३९° इसके जल को कवि ने भगवान शंकर की जटा से गिरा हुआ कहा है।१९१ नल के राज्याभिषेक के समय गोदावरी का जल भी लाया गया था। ____२९. पयोष्णी-यह नदी कुण्डिननगर के पास बहती थी। इसका आधुनिक नाम पूर्णा है। कवि के अनुसार यह पाप-समूह को दूर करने वाली, गंगा का उपहास करने वाली और स्वर्ग-मार्ग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy