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________________ १३१ श्रीपार्श्वनाथचरणाम्बुजभजनाकार नरनिकरे॥१॥ विक्रमतो मुनि-मुनि-रस-शशि (१६७७) शरदि विचारसारभाष्याणाम्। पूर्वाचार्यकृतानां मद्भक्त्यादिघटितानाम् ॥ ३॥ अवबोधो बालानामपि भवति यतस्तदर्थवीक्षातः । विदधे पुण्यश्रीभरसाह-स्थिरपालवचनेन ॥ ४ ॥ १०५. प्रतयः सिद्धान्तानां स्वद्रव्यदानेन येन सुनयेन। बढ्यो लेखयत तथा हारि विहारः समुद्दधे ॥ ५॥ श्री चिन्तामणिपार्श्वनाथप्रभोः प्रतिष्ठापि तस्य निजवितैः । साधर्मिकैरदत्तैः लूद्रवपत्तनवरेऽकारि॥६॥ १०६. अम्बुधि-मुनि-रस-ससिहर (१६७४) वरसइ, ए संबंध भण्यउ मन हरसइ। जेहनइ संभलिवा बुध तरसइ, जिण धावइ सहूआं मन सरसइ॥ २६८॥ युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरि, राजइ राजइ जे गुण भूरि। जिहां जहांगीर साहि सब रोज, नयमहि प्रजा पालइ जिम भोज ॥ २६९ ॥ आगरा नयर खेमवर शाखइ, जेहनी सुंदरता सवि आखइ। उवझाय खेमराय महंत, हुआ खरतरगछि गुणवंत ॥ २७० ॥ विजयमान तस सीस सिरोमणि, श्रीगणविनयइ अछइ जिम दिनमणि। तसु सीसइ मतिकीरति एह, निज मति सारइ कीरति गेह ॥ २७२ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004071
Book TitleDamyanti Katha Champu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages776
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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