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एवं युवराज श्री जिनसागरसूरि के राज्य में शिष्य मतिकीर्ति की सहायता से हुई है। इसकी प्राचीन प्रति खरतरगच्छ ज्ञानभंडार, जयपुर एवं २०१४ की लिखित अर्वाचीन प्रति बड़ा ज्ञान भंडार, बीकानेर में प्राप्त है।
४१. अञ्चलमत-स्वरूप वर्णन-इस चौपाई में अंचलगच्छ की आगमविरुद्ध मान्यताओं का युक्तियुक्त खण्डन किया गया है। इसकी रचना सं० १६७४ भाद्रपद शुक्ला ६ को मालपुरा में हुई है। इसकी १७वीं शती में ही लिखित प्रति थाहरु शाह ज्ञान भण्डार, जेसलमेर में प्राप्त है।
४२. एकपञ्चाशद्विचारसार चतुष्पदिका-इसका प्रसिद्ध नाम ५१ बोल चौपाई है। तपागच्छियों द्वारा द्वेषभाव से किये आक्षेपों के प्रत्युत्तर स्वरूप यह ग्रन्थ रचा गया है। इसमें ५१ प्रश्नों (बोलों) पर विचार किया गया है। मूल ग्रन्थ राजस्थानी ३६१ पद्यों में है, इस पर संस्कृत गद्य में ही स्वोपज्ञ टीका है। टीका में टीकाकार ने लगभग ७० ग्रन्थों के प्रमाण देते हुए खरतरगच्छ की विशुद्ध समाचारी का प्रतिपादन किया है। इस चौपाई की रचना सं० १६७६ में राडद्रहपुर में हुई है। इस समय गच्छनायक श्रीजिनराजसूरि थे। इस प्रशस्ति में भी जयसोमजी के लिये 'महोपाध्याय' पद का प्रयोग किया है। इसकी १७वीं शताब्दी की लिखित ४० पत्रों की प्रति श्री पूज्य श्रीजिनचारित्रसूरि संग्रह-राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान शाखा कार्यालय, बीकानेर में प्राप्त है। क्रमांक १७७८ है। इस प्रति के प्रारम्भ के ५ पत्र प्राप्त नहीं हैं।
इस ग्रन्थ के आधार से निर्मित एक और ग्रन्थ 'तपोट लघु विचारसार' नाम से प्राप्त है। इसमें कर्ता का नाम नहीं है। अन्त में लिखा है कि "एवं एकपञ्चाशद्विचारसारचतुष्पादिकावृत्तिगत कियद् विचारा लेशत: समुद्धृताः विशेषार्थिना तु सा एव सवृत्तिर्विलोक्या इति।'' इसकी प्रति महिमा भक्ति जैन ज्ञान भण्डार, बीकानेर में प्राप्त है। क्रमांक २२७५ है।
सन्देहहास्पद ग्रन्थ १. गीतासार टीका
___ 'नल-चम्पू' के उपोद्घात पृ० १४ में नंदकिशोर शर्मा साहित्याचार्य ने गुणविनय प्रणीत ग्रन्थों की तालिका देते हुए 'गीतासार टीका (स्कन्द- पुराणान्तर्गत-गीतासाराभिधौङ्कारमाहात्म्य टीका)' का उल्लेख किया है किन्तु यह प्रति कहाँ प्राप्त है, इसका उल्लेख नहीं है। अतः ग्रन्थ को देखे बिना निर्णय असंभव है कि यह कृति गुणविनय की है या अन्य की। २. तपगच्छ चर्चा
आत्मानन्द सभा, भावनगर के संग्रह में ८ पत्रों की प्रति है, प्रणेता गुणविनय लिखा है। ग्रन्थ देखे बिना निर्णय नहीं किया जा सकता। फिर भी मेरा अनुमान है कि 'तपोटलघुविचारसार' जैसा ही कोई उद्धृत ग्रन्थ होगा। अस्तु.
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