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________________ छोड़कर महावीर जन्म तक के प्रसिद्ध मुख्य २७ भवों को ही गणना की गई है। इसकी सूची निम्नानुसार है। यह सूची इस विश्व के मंच पर जीव शुभाशुभ कर्मों के उपार्जन से कैसे-कैसे स्वरूप ग्रहण करता है, उसका कुछ परिचय प्रदान करेगी। 93 १. नयसार १५. पंचम ब्रह्मदेवलोक में देव ( गामका मुखिया) २. प्रथम सौधर्मवेवलोक में देव ३. मरीचि राजकुमार ( संयम ग्रहण) ४. पंचम ब्रह्मलोक में देव ५. कौशिक ब्राह्मण ६. पुष्यमित्र ग्राह्मण ७. प्रथम सौधर्म देवलोक में देव ८. अग्निद्योत ब्राह्मण ९. द्वितीय-ईशानवेवलोक में देव १०. अग्निभूति ब्राह्मण ११. तृतीय सनत्कुमार देवलोक में देव १२. भारद्वाज १३. चतुर्थ माहेन्द्र देवलोक में देव १४. स्थावर ब्राह्मण १६. विश्वभूति राजकुमार ( संयम ग्रहण) १७. सप्तम महाशुक्रदेवलोक में देव * २७ भव में से २, ४, ७, ९, ११, १३, १५, १७, २४, २६, ये दश भव देवलोक में देवरूप से। १९, २१, ये दो भव नरक में नारकीय रूप से। २० वाँ भव तिर्यच गति में पशु सिंह रूप का। और १, ३, ५, ६, ८, १०, १२, १४, १६, १८, २२, २३, २५, २७, ये १४ भव मनुष्यगति के अन्तर्गत मनुष्यरूप के थे। इसके अन्तर्गत ५, ६, ८, १०, १२, १४, ये भव प्रथम ब्राह्मण और बाद में त्रिदण्डी होने के समझने चाहिये। ★ ३, १६, २२, २५, इन चारों ही भवों में राजकुमार थे। इन चारों ही भवों वाले व्यक्तियोंने एक ही भव में संयम चारित्र ग्रहण किया था। २३ वे भव के अन्तर्गत महाविदेह में चक्रवर्ती हुए और १८ वाँ भव वासुदेव का हुआ। ★ तीर्थंकर होने का पुण्यनामकर्म २५ वे नन्दन मुनि के भव में बीशस्थानकादि तप की आराधना द्वारा बद्ध किया-निकाचित किया और वह २७ वें भव में उदित होने पर तीर्थंकर रूप से जन्म प्राप्त किया। परिशिष्ट सं. ३ १८. त्रिपृष्ठ वासुदेव १९. सप्तम नरक में नारकी २०. सिंह २१. चतुर्थ नरक में नारकी २२. मनुष्यभव ( अनामी) ( संयम ग्रहण) २३. प्रियमित्र - चक्रवर्ती ( संयम ग्रहण ) २४. सप्तम महाशुक्र देवलोक में देव २५. नन्दन राजकुमार (संयम ग्रहण) २६. दशवे प्राणत देवलोक में देव २७. वर्धमान महावीर ( अन्तिम भव) ★ २७ भव में १/३ भाग देवलोक का और उससे कुछ अधिक मनुष्यगति का है। ★ नयसार की कथा श्वेताम्बर दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों के प्राकृत संस्कृत चरित्रों में विविधरूप में दृष्टिगोचर होती है। भगवान श्री महावीर का कुटुम्ब-परिचय भूमिका – श्वेताम्बर मतानुसार भगवान महावीर ब्राहमण और क्षत्रिय इस प्रकार दोनों कुल को दो माताओं के गर्भ में पोषित हुए थे। कल्पसूत्र के विधान के अनुसार उन्होंने पाणिग्रहण-विवाह किया था और संतति को जन्म भी दिया था। तीर्थंकर जैसी व्यक्तियों को भी अन्तिम भव में विवाह और भोगमार्ग के अधीन होना पड़ा है, उससे कर्म की सत्ता कैसी प्रबल और अप्रतिहार्य है उसका पता चल जाता है। Jain Education International १३. नेमि कृत 'महावीर चरियं' में 'बलाधिक' नाम है। शेष चरित्रकार उपर्युक्त नाम प्रस्तुत करते हैं। - दिगम्बर मान्यता के अनुसार भगवान की माता ( त्रिशला ) एक ही थी और भगवान अविवाहित थे। सम्बन्ध प्रथम माता प्रथम पिता द्वितीय माता द्वितीय पिता ज्येष्ठ भ्राता भाभी बहन पत्नी पुत्री पौत्री चाचा दामाद क्रमांक २ नाम देवानन्दा ऋषभदत्त त्रिशला सिद्धार्थ नन्दिवर्धन ज्येष्ठा सुदर्शना यशोदा प्रियदर्शना शेषवती ३ ४ सुपा जमालि अस्थिक नालन्दा चम्पा पृष्ठचम्पा स्थल नाम ब्राह्मणकुण्डगाम विदेह जनपद क्षत्रियकुण्ड गाम क्षत्रियकुण्डगाम ★ भगवान स्वयं काश्यप गोत्र के थे। मतांतरे नन्दिवर्धन लघुबन्धु थे। ★ आश्चर्य की बात है कि भगवान महावीर जैसे व्यक्ति की माता के पिताका (नाना का) नाम कहीं उपलब्ध नहीं होता। त्रिशला का परिचय अनेक ग्रन्थ लेखकों ने विदेह नृपति चेटक की भगिनी रूप से देकर सन्तोष माना है। चेटक के मातापिता " का नाम मिले तब त्रिशला का प्रश्न हल हो सके। १४ ★ प्रथम माता देवानन्दा का विशेष परिचय मिलता नहीं है। यशोदा जैसी भगवान की सहधर्मचारिणी का इतिहास भी सर्वथा अन्धकार में है। वर्धमान महावीर के पुत्री, भाई, और बहन एक-एक ही थे। ★ भगवान की पुत्री का 'ज्येष्ठो' ऐसा तृतीय नाम भी था। ★ देवानन्दा और पिता ऋषभदत्त ने महावीर के ही पास दीक्षा ग्रहण करके, तप करके, उसी भव में मोक्ष प्राप्त किया था। ★ त्रिशला विदेह जनपद में होने के कारण उनका 'विदेहदिन्ना' विदेहदत्ता और उसके १७ अतिरिक्त 'वैदेही' और 'विशाला' नाम भी था। स्थल वैशाली क्षत्रियकुण्ड गाम क्षत्रियकुण्ड गाम ★ यशोदा वसन्तपुर के समरवीर सामन्त की पुत्री थीं, यह प्रसिद्ध बात है, जब कि देवेन्द्रसूरिकृत दानादिकुलक में मालवा के क्षत्रिय राजा की पुत्री थी ऐसा निर्देश किया है, परन्तु गाँव अथवा राजा का नाम बतलाया नहीं है। दिगम्बर परंपरा जितशत्रुकी पुत्री थी ऐसा मानते है। ★ संस्कृत में ग्राम और प्राकृत (गुजराती) में गाम शब्द का प्रयोग होता है। For Personal & Private Use Only परिशिष्ट सं. ४ भगवान श्रीमहावीर के चातुर्मासों का क्रम, उनके स्थान, समय आदि १८ श्रमण जीवन वि. पूर्व का कौनसा वर्ष ? कौन सा वर्ष? गोत्र जालंधर कोडाल वसिष्ठ काश्यप १ २ वसिष्ठ ३ ४ कौण्डिन्य काश्यप ५१२-५११ ५११-५१० ५१०-५०९ ५०९-५०८ ११ छप्रस्थावस्था तथा केवलज्ञान की जानकारी छद्मस्थ " १४. हरिषेणाचार्यकृत "बृहत्कथाकोष" के "श्रेणिक कथानक' (श्लो. १६५) में चेटक के पिता का नाम 'केक' और माता का नाम 'यशोमती' बताया गया है। दिगम्बर परंपरा त्रिशला को चेटक की पुत्री मानते है। १५. देखो-विशे. भा. टीका। कल्पसूत्र में यह नाम नहीं हैं। १६. देखो कल्पसूत्र सूत्र ११ । १७. देखो भगवतीसूत्र अभयदेवीया टीका, श. २, उ १, प्र. २४६ तथा दानशेखरी टीका पृष्ठ-४४ सूत्रकृतांग-शीलांक टीका, पृष्ठ ७८। १८. यहाँ दी गई संवत सूची. पं. श्री कल्याणविजयजी लिखित 'श्रमण भगवान महावीर पुस्तक के आधार पर दी गयी है। १९. नालन्दा यह राजगृह का विख्यात और बृहत् उपनगर था। ७९ www.jainelibrary.org
SR No.004065
Book TitleTirthankar Bhagawan Mahavir 48 Chitro ka Samput
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherJain Sanskruti Kalakendra
Publication Year2007
Total Pages301
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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