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हेतुका अभाव और निर्जरारूप हेतुको लगा सकेंगे लकिन कैवल्यहोनेमें जितने प्रतिबन्धक हैं उन सबका बन्धहेतुका अभाव और उन कमोंका निर्जरण केवलज्ञानके पूर्व अनन्तर कालमें रहता है. समप्रकर्मका अभावरूप मोक्ष होनेमें समग्रकर्मके बन्धहेतुका अभाव तो और और गुणस्थानके काल में है और समप्रकर्मका निर्जरण भी और और गुणस्थानकोंमें हैं. याने मोक्ष होनेके अनंन्तर पश्चात्कालमें न तो समग्रकर्मके बन्धहेतु थे, और न समग्रकीकी निर्जरा भी अनन्तर पश्चात्कालमें होती है. इसीसे श्वेताम्बर लोग इस 'बन्धहेत्वभाव.' सूत्रको दोनों में याने केवलज्ञानके कारण मोहादिकके क्षयमें और सकलकर्म मोक्षमें लग सकने पर भी लगाते नहीं हैं सिर्फ पेश्तर सूत्र में कहे हुए केवल. ज्ञान के कारणरूप मोहादिकके क्षयमें ही हेतुपनसे लगाते हैं.
और यही युक्तियुक्त होनेसे मोक्षके सूत्रमें उसको शामिल करना यह दिगम्बरोंका भवभयनिरपेक्षतासे भरा हुआ अन्याय है। ... (२६ ) दशवें अध्याय में मोक्षके लक्षणके बाद दिगम्बरों
ने सूत्र ऐसे माने हैं कि 'औपशमिकादिभव्यत्वानां च' 'अन्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्यः' याने इन दोनों भागके दो सूत्र माने हैं. वेताम्बरोंने इस स्थानमें 'औपशामकादिभव्यत्वाभावाच्चान्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्यः' ऐसा एकही सूत्र माना है. इस स्थानमें भी यही सोचनेका है कि दिगम्बरोंने असलके एकसूत्रके दो सत्र किने या
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