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करे, क्योंके देव और नारक सम्यक्त्ववान तो होते भी है परंतु वे देवायुका कभीभी आश्रव और बंध कर सक्ते ही नहीं, तो फिर ऐसी अवस्थामें 'सम्यक्त्वं च' यह सूत्र कैसे हो ? लेनाभी हो तो सराजसूत्र ही लेना होगा और 'च' तो इधर फजुलही है । इन कारणोंसे स्पष्ट होजाता है कि वास्तव में दिगम्बरियोंने श्रीमानकी कृतिमें इस सूत्रको घुसेड दिया है, ऐसा श्वेताम्बरी लोग मानते हैं।
(१७) आगे अध्यायसातवेंमें " तत्स्थैर्यार्थ भावनाः " ऐसा सूत्र कह कर महावतकी पांच पांच भावना दिखानेवाला सूत्र दोनही सम्प्रदायवाले स्वीकार करते हैं, किन्तु इसके सिवाय भी दिगम्बरलोग प्रत्येक महावतकी पांच २ भावना दिखानेके लिये पांच सूत्र और मानते हैं। इस पर श्वेताम्बरियोंका कहना ऐसा है कि यदि आचार्यश्रीको प्रत्येकमहाव्रतकी भावना आगे सूत्र द्वारा दिखलानी होती तो-पंच पंचही के साथ सूचना कर देते । जैसा कि दूसरे अध्यायमें औपशमिकादिके भेदोंकी संख्या दिखाकर भेद दिखाना था तो "यथाक्रम" कहा। आगे पर भी देशविरतिके अतीचारोंके वख्त "तशीलेषु पंच पंच यथाक्रमम्" ही कहा । अर्थात् संख्यासे कहनेके बाद जब अनुक्रमसे दिखानेका होता है तो वहांपर 'यथाक्रम' शब्द कहते हैं । आठवें अध्यायमें बन्धके अधिकारमें ज्ञानावरणादि. भेदोंकी पांचनौआदि संख्या बतलाई, और आगे उनके भेद
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