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कोई अभव्य या. मिथ्यादृष्टि देशविरति या सर्वविरति धारण करनेवाले होते हैं, और इससे वे अभव्यादिक ऐसी देशविरति आदिकी दशामें चारों प्रकारके देवों में किसी भी प्रकारके देवके भवसम्बन्धी आयुष्यका आश्रय करते हैं, अर्थात् देशविरति आदि द्रव्य और भावसे बनते हैं, और इनसे चारों ही प्रकारका देवआयुका बन्ध होता है, किन्तु सम्यक्त्व तो सिवाय वैमानिकके दूसरे देवआयुधका कारण बनता ही नहीं । अता सामान्य देवआयुके आश्रयमें सम्यक्त्वको लेना सर्वथा अनुचित है । यदि मानलिया जाय कि विशेषदेवोंके आयुका कारण हो और उसे सामान्यमें लिया जाय तो कोई हर्ज नहीं है, किन्तु यहां पर तो देव और नारकोंको देवताके आयुष्य सम्बन्धी बन्धाश्रव है ही नहीं और देव व नारकोंको पूर्वभवसे चला आया क्षायिक क्षायोपशमिक ही है ऐसा नहीं है और न वे जीव सम्यक्त्वयुक्त अवस्थामें भी दूसरी जिन्दगीके आयुका आश्रव और बन्धः करे तब भी देवलोकके आयुष्यका आश्रय और बन्ध कर सक्ते हैं। साफ साफ बात है कि संयम और संयमासंयम जिस जिस गतिमें जिस जिस जीवकों है वे जीव यदि आयुका आश्रय और बंध करे तो अवश्य देवआयु. काही आश्रव और बंधकरे ऐसा नियम है, लेकिन ऐसा कभीभी नियम नहीं हो सकता है कि किसीभी गतिका कोईभी जीव सम्यक्ववान होवे तो देवका आयुष्यका ही आश्रव और बंध
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