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(५१)
दिखानेवाले सूत्रकों मंजूर किये बिना कदापि नहीं रह सकता।
(८) जिस प्रकार दिगम्बरोंने "स्थितिः" इस अधिकार सूत्रको मंजूर नहीं किया उसी प्रकार "सौधर्मादिषु यथा. क्रम" यह सूत्र भी दिगम्बरोंने उड़ा दिया है, यद्यपि दो सूत्रोंमें सौधर्मेशान और सनतकुमार माहेन्द्रका ग्रहण किया है, किन्तु त्रिसप्तेत्यादिसूत्र में किस २ देवलोककी कितनी २ स्थिति है यह नियम करना तथा "अपरा पल्योपममधिकं" जरूर इस सूत्रमें और आगेके सूत्रों में भी व्यवस्था करनेमें कठिनता होगी. जिस प्रकार "वैमानिकाः' और 'उपर्युपरि" ये अधिकारसूत्र मंजूर किये हैं, उसी तरह यह अधिकारसूत्र भी मंजूर करना सर्वथा उचित है, कि जिससे सौधर्मेशानादिकके नाम भी नहीं कहने पडेगें, और दूसरे सूत्रों में व्यवस्थापूर्वक समन्वय भी हो सकेगा।
(९) श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही संप्रदायोंकी मान्यतानुसार असुरकुमारके इन्द्रोंकी और शेष असुरोंकी स्थितिमें खास फर्क है, तो भी दिगम्बरोंने सर्वअसुरोंकी सामान्य असुरशब्द लेकर ही स्थिति बतलाई है, तथा दक्षिण उत्तर के इन्द्र, शेष कुमार और उनके इन्द्रोंकी भी स्थिति कही, किन्तु असल सूत्रोंको उडा दिये हैं इसी तरहसे ग्रह, नक्षत्र, तारागणकी स्थिति, एवं उनकी जघन्य उत्कृष्ट स्थितिके सूत्र भी उडा दिये हैं, इस प्रकार इस चौथे अध्यायमें उन्होंने सब मिलाकर १३ सूत्र उडा दिये हैं।
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