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हो सक्ती होवे कहां से ?, क्योंकि दिगंबरियोंने स्वयं सूत्र बना कर श्रीमानकी सूत्रमाला में दाखिल कर दिये हैं ।
चौथे अध्याय में " पतिन्तिलेश्याः " यह सातवां सूत्र दिगंबरियोंकों मंजूर नहीं है जब दोनों संप्रदायवाले भवनपति और व्यन्तरदेवों को कृष्ण, नील, कापोत और तेजो ऐसी चार लेश्या मानते हैं, और यह भी मानते हैं कि ज्योतिष्कदेवको सिर्फ तेजोलेश्या याने पीतलेश्याही है, तो फिर इधर भवनपति और व्यन्तरकी चार लेश्या दिखानेवाला सूत्र क्यों न माना जाय ? दिगंबरियोंने भवनपति और व्यन्तरको लेश्या नहीं मानी है ऐसा तो नहीं है, किन्तु दूसरा सूत्र जोकि "तृतीयः पीतलेश्यः" अर्थात् ज्योतिष्क नामक तीसरीनिकायवाले को तेजोलेश्याही है, ऐसा दिखानेके लिये जो सूत्र था उस स्थान पर दिगंबरियोंनें “आदितस्त्रिषु पीतान्तलेश्याः " अर्थात् आदिकी तीन निकाय के देवोंकों पीतान्तलेश्या होती है, ऐसा सूत्र बनाया है, अब इधर स्पष्टही है कि जब ज्योतिष्कदेवोंकों तेजोलेश्याके सिवाय दूसरी लेश्याएं है ही नहीं, तो फिर आदिकी तीन निकायोंको पीतान्त याने कृष्ण, नील, कापोत और तेजोलेश्याएं हैं, ऐसा कहना कहांसे सत्य होगा ?, और यदि ऐसा गोटाला करनाही है तो फिर ऐसाही क्यों नहीं कह देते कि "देवानां षड् लेश्याः" याने देवोंको ६ लेश्याएं हैं, अथवा सूत्रकी भी क्या जरूरत हैं ? । इससे स्पष्ट होता है कि
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