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(२९)
में चलते २ प्रमार्जन करे किससे ? अर्थात् उपकरण नहीं माननेसे ईर्यासमिति भी अमुक टाइम में नहीं बन सक्ती । इसी तरह दिनमें भी यदि कीटिकादिका समूह निकले, उस समय भी विराधनासे वचना उनको मुश्किल होजाता है.
. भाषासमितिमें भी मुखवस्त्रिका नहीं रखनेसे बोलते समय संपातिमादिककी हिंसा नहीं रुक सक्ती. पात्रादिक न होनेस वारिशकी मौसममें भी जलवृष्टि होती रहने पर भी पेशाब, टवीके लिये बाहर जानाही पडेगा. और यदि. साथमें कंबली नहीं होगी तो अपकायके जीवोंकी भी यतना नहीं हो सकेगी। मतलब यह है कि उपकरण नहीं माननेवालकि लिये इर्यासमितिआदिमें से एक भी समिति अशक्य है, और शास्त्रकार तो पांचो ही समितिको साधुपनकी माता तरीके गिनाते हैं। ... (११) दिगंबरों के हिसाबसे जैनमजहब मथुनके शिवाय स्याद्वादरूप होने पर और भावप्राधान्यवाला होने पर भी नग्नपना निरपवाद है याने किसी भी अवस्थामें साधु वस्त्र नहीं रख सक्ता या वस्त्रका संसर्गवाला उच्चतरभाववाला होने पर भी मोक्ष नहीं पा सक्ता ( बाडे या म्हेलका संसर्गकी या वस्त्र सिवाय औरका संसर्गकी हरज नहीं है ) किन्तु श्वेतांबरोंके हिसाबसे शक्ति और अतिशयसंपन्नके लिये साफ ननपना जरूरी है, लेकिन शेष अशक्त और अनतिशायीके लिये संयमरक्षादिका
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