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( २१ ) इसी तरह प्रविचारके विषयमें भी श्वेतांबरोंके हिसाबसे दूसरे देवलोक तक तो मैथुनक्रिया कायासे है । बादमें दो देवलोक तक स्पर्शसे, फिर आगे दो याने ५.६ में शब्दसे ७-८ में रूपसे और आगे ९-१०-११ १२ इन चारदेवलोंकों में सिर्फ मनस ही प्रविचार है. अर्थात् दो दो देवलोकमें क्रमसर एक एक बात लीमई है । अब इस स्थान पर दिगम्बरोंको१६ देवलोकके हिसाबसे मोटाला करना पडता है.क्योंकि देवलोक शेष रहे हैं१४
और विषय रहे हैं ४ स्पर्श, रूप, शब्द और मन. इसलिये दो दोका क्रम भी नहीं मान सकते है कारणकि १४ में चार विभाग करना जरा मुश्किल है यदि दिगंबरों की मान्यता मुजब अनियमित क्रम होता तो सूत्रकारको अलग २ सूत्र करने पडते कि अमुक अमुकप्रविचार और अमुक अमुक. किन्तु ऐसा नहीं करतें समान विभागहोनेसे ही सूत्रकारमहाराजने अलग २ सूत्र नहीं करके सिर्फ एकही सूत्र किया और दो दो देवलोकोंमें एक एक बात दिखादी ___ यहां पर पाठकोंको इतनी शंका जरूर होगी कि श्वेतांबसें के कहने मुताबिक १० देवलोकमें,४ विषयकी सत्ता माननी है और दोदोंमें एकएक विषयभी मानना है तो यह कैसे होसत्ता है ? यह शंका भी. बेबुनियाद है, क्योंकि सूत्रकार श्रीउमास्वाति
महाराजने. ही आनत और प्राणतका आरण और अब्दुतका स्वास दिखाकर दोनोंका निर्देश एकही साथ किया
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