SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२) है। अर्थात् दिगम्बरों के हिसाबसे भी श्वेताम्बरों के ही मुताबिक श्रीवीरसंवत् और विक्रमसंवत्का फर्क ४७० होनेसे चीरसंवत् १३६+४७७६.०६ होता है, तो ऐसे विषयमें जो तीनवर्षका फरक होता है वो कोई फरक नहीं गिना जाय, अतः दोनों सम्प्रदायके भिन्नताका समय दोनों की मन्तव्यतासे सरीखा ही है। अब इन दोनों सम्प्रदायोंमेंसे श्वेताम्बर कहते हैं कि हम असलसे हैं, और दिगम्बरसम्प्रदाय हममें से निकली है, और इसकी पुष्टिमें बोटिकका बयान जो आवश्यक, विशेषावश्यक, उत्तराध्ययन आदिमें दर्ज है वह दिखलाते हैं। उधर ‘दिगम्बरीलोग कहते हैं कि श्वेताम्बरसम्प्रदाय हमसे निकली है, और इसके सबूतमें दर्शनसारग्रन्थका सबूत देते हैं, कौन किससे निकला है ? इस विषयमें यदि बटस्थ दृष्टिले विचार किया जाय तो दिगम्बरलोग ही वाम्बरोंसे निकले हैं। इसका विशेष विवेचन तो इस विषयके स्वतंत्रलेखमें होना ही ठीक है, किन्तु जो. दिगम्बर. लोग श्वेताम्बरमेंसे नहीं निकले होते तो वे दिगम्बर बन्द जो बस्त्रकाही प्रश्नोत्तररूप है उससे आपको कहलातेही नहीं। पाठकों! यदि दान्देशीसे विचार किया जाय तो स्पष्ट मालूम होजायगा कि दोनोंके नामक अखीरमें अम्बरबाद लगा हुआ है, जोकि वस्त्रका वाचक है । इससे एक कहने हैं कि हम सकेदकसवाले हैं और दूसरे कहते हैं कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004064
Book TitleTattvartha Kartutatnmat Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagranandsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1936
Total Pages180
LanguageSanskrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy