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________________ ॥ श्री गणधराय नमः ॥ तत्वार्थसूत्र के dearer कर्ता वेतांबर हैं * या दिगंबर ? श्रीमान् उमास्वातिजीवाचकमहाराज ग्रन्थकर्ता तवार्थसूत्र एक ऐसा अपूर्व ग्रन्थ बना हैं उत्कृष्टता ※ कि इसको देखनेवाला इसे अपनायें बिना * कदापि नहीं रह सक्ता । अतः इसका कोई न कोई खास कारण अवश्य होना चाहिये। इसविषय में और विद्वानह के चाहे कुछ भी विचार हो किन्तु मेरे ख्यालसे तो इसका यही खास कारण मालूम होता है कि यह ग्रंथ बडा ही संग्राहक है. पाने दूसरे ग्रंथ एक एक विषयको प्रतिपादन कर शास्त्रके एक एक महनविषयकी सुगमता करके शास्त्रसमुद्र में प्रवेश कराते हैं और इतना होने पर भी एकविषयका तलस्पर्शी ज्ञान उत्पन्न नहीं कर सक्ते, किन्तु तवार्थसूत्र ही एक ऐसा ग्रंथ है कि जो सभीविषयोंका ज्ञान उत्पन्न करके तमाम ग्राम अवमाइन यो श्रवणकी योग्यता करा देता हैं, तमामविषयोंका तलस्पर्शीज्ञान करानेवाला याने सद होने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004064
Book TitleTattvartha Kartutatnmat Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagranandsuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1936
Total Pages180
LanguageSanskrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size15 MB
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