________________
जरूर होगी कि पेश्तरके सूत्रमें क्षायिकके नवभेद दिखाते दानादिक पांच स्पष्ट दिखाये हैं. तो इधर “दानादि' इतना ही नहीं कहते 'दानादिलब्धयः ऐसा श्वेताम्बरोंने क्यों कहा, लेकिन ऐसी शंका नहीं करना. सबब कि क्षायोपशमिकभावक दानादिक पांच प्रवृत्ति में आते हैं और जगतमें व्यवहार में भी आते हैं, इससे उसका लब्धि तरीके व्यवहार होता है और क्षायिकभावसे होनेवाले दानादिक प्रवृत्तिरूप ही होवे वैसा नहीं है, इसी सबबसे पश्तर दानादिकके साथ लब्धिशब्द नहीं लगाया और इधर क्षायोपशमिकभेदमें ही दानादिकके साथ लब्धिशब्द लगाया है यह समझ लेवें. .... .
(५) दूसरे अध्यायमें ही औदयिकके इक्कीसभेदों में श्वेताम्बरोंने 'मिथ्यादर्शनाज्ञानासंयतासिद्धत्व'. ऐसा पाठ माना है. तब दिगम्बरोंने 'मिध्यादर्शनाज्ञानासंयतासिद्ध.' ऐसा पाठ माना है. याने श्वेताम्बरोंने 'त्व' प्रत्यय मानकर असंयतत्व और असिद्धत्व माना है. दिगम्बरोंने त्यप्रत्यय नहीं लिया है, इससे असंयत और असिद्धको औदयिक मानना होगा, लेकिन वह लाजिम नहीं होगा, क्योंकि असंयत और आसिद्ध ऐसे तो जीव आयेंगे, और जीव तो औदयिकभावसे नहीं है. यदि भावप्रधान निर्देश मानके इधर असंयतत्व और असिद्धत्वको लेना है तो पीछे 'त्व' प्रत्यय ही कहना क्या पुरा था , और त्वप्रत्यय था उसको क्यों उड़ा दिया शास्त्र
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org