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(२) इसी सूत्रके आगेके सूत्रमें श्वेताम्बर 'यथाक्त निमित्तः ऐसा पाठ मानते हैं. तब दिगम्बर लोग 'क्षयोपशम. निमित्तः' ऐसा मानते हैं. ___ श्वेताम्बरोंका कहना है कि आगे दूसरे अध्यायमें क्षायो पशमिकके भेदोंमें अवधिज्ञानको गिनायेंगे इससे इधर 'यथोक्त. निमित्त' ही शन्द कहना ठीक है. क्योंकि यहां पर तो अपने अपने कर्मके क्षयोपशमसे मतिज्ञानादिककी उत्पत्ति इस प्रकरण में निश्चित होती है. किन्तु इधर क्षयोपशमशब्द कहने से किसका क्षयोपशम लेना यह निश्चित नहीं होगा. क्योंकि मतिज्ञानादिज्ञान और चक्षुदर्शनादि दर्शन और दूसरे भी अज्ञानादिक क्षायोपशमिक भावके हैं. और वे भी अपने अपने आवारककर्मके क्षयोपश्मसे होते हैं, तो फिर इधर किसका क्षयोपशम लेना ?, यह संदिग्धही होगा. याने क्षयोपशमकी साथ इतना जरूर. कहना होगा कि 'स्वावारकक्षयोपशमनिमित्तः' ऐसा अवधिमनुष्य तियंचको होता है, इंधर ऐसी शंका जरूर होगी कि कर्मकी प्रकृत्तिके क्षयोपशमका अधिकार अभी तक कहा ही नहीं है, तो फिर इधर 'यथोक्तनिमित्तः' ऐसा कैसे कह सके ? लेकिन ऐसी शंका नहीं करनी चाहिये. इसका सबब यह है कि अव्वल तो शास्त्रकारमहाराजने. जैनशास्त्रके आधारसे ही ग्रन्थ किया है, इससे शास्त्रका अधिकार लेकर 'यथोक्तनिमित्तः' ऐसा कह सकते हैं.. व्याकरणशास्त्रादिककी तरह स्वतन्त्र
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