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सकती है, लेकिन सूत्रकार महाराजकी शैली ऐसी है कि अनु. वृत्ति करने के लिये प्रयत्न करना. जैसे दूसरे अध्यायमें औपशमिकके भेदकी संख्यामें सभ्यत्व और चारित्र कहे और पीछे उनको क्षायिकके भेदमें भी लेना था तो वहां पर अनुवृत्तिदिखानेके लिये चशब्दको दाखिल किया. इधर पेश्तरके अध्यायमें ही 'मतिः स्मृतिः०, इस सूत्र में मतिका निरूपण करने पर भी आगे मतिज्ञान लेना था तो 'तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तं' ऐसा सूत्र कहकर तत्शब्दको दाखिल किया. इसी. तरहसे सारे तत्त्वार्थमें अधिकार और अनुवृत्ति के लिये चशब्द या ततशब्द दाखिल किये हैं तो फिर इधर इस सूत्रमें दाखल किया हुआ अवधिशब्द आगे 'यथोक्त०' सूत्र में किस तरह जायगा? यह तो अवधि शब्द इधर घुसेडनेका विचार हुआ, लेकिन इन्होंने 'नारकदेवानां', ऐसा जो पाठ इस सत्र में था वो भी पलटा दिया और 'देवनारकाणां' ऐसा पाठ कर दिया. सूत्रकारमहाराजने अधोलोक, तिर्यग्लोक और ऊलोक वैसा क्रम रक्खा है. और इसीसे ही स्थान निरूपणमें पेश्तर नास्की, पीछे मनुष्य तिर्यच और पीछे देवका निरूपण किया है. और आयुके कारणमें भी नारकादिक अनुक्रम रक्खा है. आबुकी प्रकृतियोंकों दिखाने में भी पेश्तरः नारककी ही आयुप्रकृति दिखाई है, तो इधर 'नारकदेवानां' ऐसा पद रखना यही सूत्रकारको अभिमत होना चाहिये.
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