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इससे केवलसम्यक्त्वादिकके सिवाय सब औपमिकादिकका अभाव होना वह मोक्षका सबब दिखाया. इधर भव्यत्वका अभाव दिखाया उसका सबब यह है कि भव्यत्व जो है वह कारणदशा याने मोक्षपानेकी योग्यताका नाम है, और मोक्षरूप कार्य जब होगया तो अब कारणदशा न रही इससे उस भव्यत्वकाभाव कहना ही होगा जगत्में भी वृक्ष या स्कन्धके वक्त अंकुरदशा नहीं रहती है. उसी तरहसे इधर भी मोक्षके वक्त भन्यत्व न रहे यह स्वाभाविक है. और इसीसे ही इधर भव्यत्वपनका अभाव भी मोक्षका हेतु माना है. जीवपणरूप पारिणामिकमाव ठहरनेका होनेसे भव्यत्वका अभाव स्पष्टशब्दसे दिखाया, यह तो स्वाभाविक ही है। ... (२७) दशवें अध्यायमें ही पूर्वप्रयोगादसंगत्वा.' इत्यादि सूत्रके आगे दिगम्बरोंने 'आविद्धकुलालचक्रवद् व्यपगतलेपालाबुवदेरण्डबीजवदग्निशिखावच्च' ऐसा सूत्र माना है. श्वेताम्बर लोग इस सूत्रको मंजूर नहीं करते हैं. श्वेताम्बरोंका कथन ऐसा है कि आचार्यमहाराज सरीखे संग्रहकार अपने बनाये हुए सूत्र में दृष्टान्तका सूत्र बनावें यह असंभक्ति ही है. यदि दृष्टान्त देना और दृष्टान्तसे पदार्थकी सिद्धि करनी इष्ट होती तो पेश्तर प्रमाणके अधिकारमें हेतुदृष्टान्तादि कहते, उपमान और आगमप्रमाणका भी स्वरूप कहकर दृष्टान्तके साथ निरूपण करते. कुछ नहीं तो धर्मास्तिकायादिकके निरूपण
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