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________________ बूद्वीप का एक चक्कर लगाने में एक सूर्य और चन्द्र को लगभग दो दिन का समय लगता अंतरिक्ष में हमें जो सूर्य, चन्द्र आदि ग्रह चमकते हुए दिखाई देते हैं वास्तव में वे उन देवों के देव विमान होते हैं। रत्न, स्फटिक आदि से निर्मित उन ग्रहों की चमक हमें आकाश में दिखाई देती है। जिसे लोक भाषा में हम सूर्य, चन्द्रादि कहते हैं । संक्षेप में मेरू पर्वत का वर्णन : है। मेरू पर्वत एक लाख योजन ऊँचा है। यह पर्वत 100 योजन नीचे रत्नप्रभा पृथ्वी (अधोलोक) में और 900 योजन तिर्यकलोक की भूमि के अन्दर दबा हुआ है। शेष 99000 योजन जमीन के ऊपर है। यह अधोलोक से लेकर ऊर्ध्वलोक तक तीनों लोकों में फैला हुआ है। रूपर्वत के तीन काण्ड एवं चार वन मेरूपर्वत की चूलिका के अलावा इसके तीन भाग हैं जिन्हें काण्ड कहते हैं। प्रथम काण्ड 1,000 योजन ऊँचा है, जो पृथ्वी के नीचे दबा हुआ है। यह मिट्टी, ककर, पत्थर तथा हीरे का बना हुआ है। हुआ है। दूसरा काण्ड 63000 योजन ऊंचाई तक है । यह स्फटिक रत्नों तथा सोना, चांदी से बना तीसरा काण्ड 36000 योजन का है जो सोने का बना हुआ है। मेरूपर्वत पर जमीन पर भद्रशाल और ऊपर ऊपर नन्दन, सोमनस और पाण्डुक - ये 4 वन है। इन चारों वनों से मेरूपर्वत चारों ओर से घिरा हुआ है। सबसे ऊपर चूलिका जो 40 योजन प्रमाण हैं। पांडुक वन इसीके चारों ओर है। जम्बूद्वीप में मुख्यतया सात क्षेत्र है जो वर्ष कहलाते हैं। इनमें पहला भारत दक्षिण की ओर है । भरत के उत्तर में हैमवत: हैमवत के उत्तर में Pph 16 सीतोदा नदी हरिकांता नदी sor73 Pph thes निषेध पर्वत महाहिमवंत पर्वत रोहितांशा नदी चूलहिमवंत पर्वत O तिगिच्छ द्रह हेमवय क्षेत्र महापूजा द्रह O पद्मद्रह भरत क्षेत्र KN BERA المياه عطا KR HID हरिवास क्षेत्र लवण समुद्र 上出出让 सीता नदी हरि सलिला नदी रोहिता नदी
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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