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________________ प्रस्तक कहाँ जा रहे हो? सिद्धसेन दिवाकर की है। वे नैगमनय को छोडकर शेष छ: नयों को मानते हैं। तीसरी परम्परा प्रस्तुत सूत्र की है। इसके अनुसार नय के मूल पांच भेद है और बाद में प्रथम नैगम नय के दो भेद सामान्य और विशेष या सर्वग्राही और देशग्राही तथा शब्द नय के साम्प्रत, समभिरूढ और एवंभूत ये तीन भेद मानते हैं। नय - लोक में अनंत पदार्थ है। प्रत्येक पदार्थ अनंत धर्मात्मक गुणात्मक है। नय पदार्थ में विद्यमान गुणों में से एक समय में एक ही गुण अंश को जानने की पद्धति है या पदार्थ के अनंत धर्मो में से किसी एक की मुख्यता करके अन्य धर्मो का विरोध किये बिना उन्हें गौण करके साध्य को सिद्ध करना नय हैं। कहा गया है, वक्तुरभिप्रायो नयः अर्थात् वक्ता के अभिप्राय को नय कहते है। किसी एक प्रसंग को लेकर जितने वचन व्यवहार (कथन करने की शैलियाँ) सम्भव है, उतने ही नय होते है। फिर भी मोटे तौर पर जैनाचार्यो ने सात नयों का निर्देश दिया है जो इस प्रकार है। लेने जा रहा हूँ। 1. नैगम नय - संकल्प मात्र को ग्रहण करने वाला नैगम नय है। जैसे कोई पुरुष प्रस्थक बनाने के लिए फरसा लेकर लकडी काटने जंगल जा रहा है। उसे कोई पूछता हैy कि तुम कहाँ जा रहे हो? वह उत्तर देता है “प्रस्थक लेने जा रहा हूँ अथवा, यहाँ कौन जा रहा है इस प्रश्न के उत्तर Dull में “बैठा हुआ' कोई व्यक्ति कहे कि AL "मैं जा रहा हूँ इन दोनों दृष्टांतों में प्रस्थक और गमन के संकल्प मात्र में वे व्यवहार किये गये हैं। शब्द के जितने अर्थ लोक प्रचलित है उन सबको यह नय मान्य करता है। इस नय में वक्ता की दृष्टि केवल वर्तमान पर ही नहीं होती भूत और भविष्यकालिन साध्य पर भी होती है। जैसे प्रत्येक चैत्र सुदी तेरस के दिन को भगवान महावीर जन्म कल्याणक दिवस कहना भूत नैगम नय है, पद्मनाभ स्वामी (श्रेणिक महाराजा का जीव) को अभी से तीर्थंकर मान कर पूजा स्तुति-स्तवनादि करना भविष्य नैगम नय' अथवा क्रियमाण को कृत कहना वर्तमान नैगमनय /प्रस्तक काट रहा हूँ। क्या कर रहे हो? नैगम नय के दो प्रकार हैं :a) सर्वग्राही और b) देशग्राही a) सर्वग्राही नैगमनय - यह सामान्य को ग्रहण करता है। जैसे यह घड़ा है। Jaducale internationat FOPersonal Pivale se on www.jalinelibrary.org
SR No.004061
Book TitleTattvartha Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2013
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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